होम देश delhi high court notice to central govt regarding guidelines for medical consent rights of same sex partners समलैंगिक जोड़ों के लिए मेडिकल सहमति के अधिकार की मांग, दिल्ली हाई कोर्ट का केंद्र को नोटिस, Ncr Hindi News

delhi high court notice to central govt regarding guidelines for medical consent rights of same sex partners समलैंगिक जोड़ों के लिए मेडिकल सहमति के अधिकार की मांग, दिल्ली हाई कोर्ट का केंद्र को नोटिस, Ncr Hindi News

द्वारा

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें समलैंगिक जोड़ों को मेडिकल अभिभावक के रूप में कानूनी मान्यता देने के लिए दिशानिर्देश बनाने की मांग की गई है। विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट…

Krishna Bihari Singh एएनआई, नई दिल्लीFri, 18 July 2025 12:46 AM

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार को उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें समलैंगिक जोड़ों को मेडिकल अभिभावक के रूप में कानूनी मान्यता देने के लिए दिशानिर्देश बनाने का आग्रह किया गया है। इससे समलैंगिक जोड़ों को मेडिकल स्थितियों में एक-दूसरे की ओर से सहमति देने की अनुमति मिल सकेगी। जस्टिस सचिन दत्ता ने याचिका के संबंध में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, विधि एवं न्याय, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और नेशनल मेडिकल कमीशन से जवाब मांगा।

याचिका अर्शिया टक्कर की ओर से दायर की गई है जो अधिवक्ता मिस चांद चोपड़ा के साथ लंबे समय से समलैंगिक संबंध में हैं। अर्शिया टक्कर और चांद चोपड़ा का जोड़ा जून 2015 से साथ है। दोनों की दिसंबर 2019 में सगाई हुई थी। बता दें कि सुप्रिया चक्रवर्ती एवं अन्य बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अर्शिया टक्कर और चांद चोपड़ा ने 14 दिसंबर, 2023 को न्यूजीलैंड में कानूनी रूप से विवाह कर लिया था। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने के मौलिक अधिकार की पुष्टि की थी।

याचिका भारतीय मेडिकल फ्रेमवर्क के भीतर सेम सेक्स विवाह को मान्यता देने की जरूरत पर प्रकाश डालती है। चांद चोपड़ा का परिवार दिल्ली से बाहर या विदेश में रहता है। इससे दोनों को एक दूसरे के लिए मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में मदद करना अव्यावहारिक हो जाता है। मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति में उनके साथ रिश्ता होने के बावजूद अर्शिया टक्कर चांद चोपड़ा की मेडिकल प्रतिनिधि के रूप में काम नहीं कर पाती हैं। टक्कर ने दलील दी कि यह भेदभावपूर्ण हैं और संवैधानिक गारंटियों का उल्लंघन है।

नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत संघ मामले का हवाला देते हुए वह दलील देती हैं कि लैगिक आधार पर भेदभाव समानता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि मेडिकल संबंधी निर्णय लेने के अधिकार से वंचित करना अनुच्छेद 19(1)(क) और (ग) का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन करता है जो व्यक्तिगत संबंधों में सम्मान और आजादी के साथ जीने के अधिकार को सुनिश्चित करता है।

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

एक टिप्पणी छोड़ें

संस्कृति, राजनीति और गाँवो की

सच्ची आवाज़

© कॉपीराइट 2025 – सभी अधिकार सुरक्षित। डिजाइन और मगध संदेश द्वारा विकसित किया गया