उत्तर प्रदेश सरकार ने कम बच्चों वाले स्कूलों को बंद कर उन्हें बाल वाटिका में परिवर्तित करने का निर्णय लिया है। इसका विरोध हो रहा है और मामला हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। विरोधियों का…
यूपी सरकार के कम बच्चों वाले स्कूलों के विलय के फैसले का विरोध हो रहा है.सरकार इन स्कूलों को अब बाल वाटिका बनाएगी.लेकिन सरकार के इस फैसले का विरोध हो रहा है.मामला हाईकोर्ट से होते हुए सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गया है.उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले दिनों एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि प्राइमरी स्कूलों में छात्र संख्या कम होने की स्थिति में स्कूलों की “पेयरिंग” की जाएगी.यानी, उन स्कूलों को बंद कर बच्चों को पास के उन स्कूलों में भेजा जाएगा जहां छात्र संख्या ज्यादा होगी.सरकार का कहना है कि इससे संसाधनों का बेहतर उपयोग होगा और बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का वातावरण उपलब्ध कराया जा सकेगा.लेकिन, इस बात पर चिंता जताई जा रही है कि सरकार की इस नीति से राज्य भर में करीब पांच हजार प्राइमरी स्कूल बंद हो जाएंगे.बेसिक शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव दीपक कुमार ने इस बारे में सभी जिलाधिकारियों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए हैं.इसके तहत स्कूल की बिल्डिंग, कक्षाएं, स्मार्ट क्लास, आईसीटी उपकरण और शैक्षणिक सामग्री जैसे संसाधन साझा किए जाएंगे, जिससे इनका अधिकतम उपयोग संभव हो सके.सरकार के इस फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी चुनौती दी गई लेकिन हाईकोर्ट ने सरकार के इस फैसले पर मुहर लगाते हुए इसे याचिकाओं को खारिज कर दिया.हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है और सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया है.याचिकाकर्ताओं का कहना है कि विलय की प्रक्रिया के कारण बच्चों को एक किलोमीटर से ज्यादा पैदल चलकर स्कूल जाना पड़ेगा, जोकि संविधान में दिए गए शिक्षा के मौलिक अधिकार का सीधे तौर पर उल्लंघन है.सरकार का तर्क बेसिक शिक्षा विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव दीपक कुमार कहते हैं कि इसका मकसद बिखरे हुए ग्रामीण शिक्षा नेटवर्क को पुनर्जीवित करना है. मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा, “छोटे स्कूल अक्सर छात्रों और शिक्षकों, दोनों के लिए एकाकीपन का कारण बनते हैं.विलय के माध्यम से हमारा लक्ष्य बेहतर प्रशासन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर नए सिरे से ध्यान केंद्रित करना है.यह कदम सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन संख्या में गिरावट के बीच उठाया गया है.कोविड-19 महामारी के बाद से उत्तर प्रदेश के सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में छात्रों के नामांकन में गिरावट आई है”एसीएस दीपक कुमार कहते हैं कि कोविड के बाद प्राइमरी स्कूलों में नामांकन घटा है लेकिन सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोविड के बाद साल 2022-23 में बेसिक शिक्षा परिषद के अंतर्गत आने वाले स्कूलों में नामांकन 1.92 करोड़ तक पहुंच गया था जो कि एक रिकॉर्ड था.लेकिन उसके बाद इसमें गिरावट आने लगी.2023-24 में यह आंकड़ा घटकर 1.68 करोड़ रह गया और फिर 2024-25 में यह नामांकन 1.48 करोड़ रह गया.मौजूदा सत्र यानी 2025-26 में नामांकन का आंकड़ा एक करोड़ के आस-पास आ गया है.सरकार का दावा है कि कम संख्या वाले स्कूलों के ज्यादा संख्या वाले स्कूलों में विलय से छात्रों की संख्या बढ़ेगी लेकिन समस्या सिर्फ संख्या होना या बीच में स्कूल छोड़ देना ही नहीं है, बल्कि समस्या और चुनौतियां इससे कहीं ज्यादा हैं.इस नियम का विरोध करने वालों का कहना है कि मर्जर की वजह से साल 2009 में बना शिक्षा का अधिकार कानून ही बेमानी हो जाएगा जिसके तहत छह से 14 साल तक के बच्चों को अनिवार्य और मुफ्त शिक्षा का अधिकार मिला है.हर छात्र की शिक्षा और उसका भविष्य महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ के अध्यक्ष दिनेश शर्मा सरकार के इस फैसले पर हैरानी जताते हुए कहते हैं कि छात्र संख्या के आधार पर सरकार स्कूल कैसे बंद कर सकती है.उनका कहना है कि हर एक छात्र महत्वपूर्ण है और हर एक छात्र की शिक्षा और उसका भविष्य महत्वपूर्ण है. डीडब्ल्यू से बातचीत में दिनेश शर्मा कहते हैं, “मैंने अपने जीवन काल में स्कूल खुलते हुए तो देखे हैं, बंद करते हुए नहीं देखा, वो भी ढोल पीटकर.मर्जर करना ही था तो पहले सरकार आंकड़े तैयार करती.सेशन शुरू होने से छह महीने पहले वो सूची दी जाती और पूछा जाता कि इन स्कूलों को बंद किया जाए या फिर इंप्रूवमेंट किया जाए.क्या सरकार ने ये जानने की कोशिश की है कि जिन विद्यालयों में छात्र बढ़ रहे हैं वो कौन से हैं और जिनमें कम हैं, वो कौन से हैं? सच्चाई यह है कि जिन स्कूलों में चार-पांच शिक्षक हैं उनमें छात्रों की संख्या बढ़ रही और जहां एक-दो शिक्षक ही हैं, वहां घट रही है”दिनेश शर्मा कहते हैं कि जहां एक ही अध्यापक के भरोसे पूरा स्कूल है, वहां वो कैसे पढ़ाएगा.बच्चे भले ही कम हों लेकिन कक्षाएं तो ज्यादा होती हैं, सभी कक्षाओं को टीचर कैसे पढ़ा पाएगा और जब नहीं पढ़ा पाएगा तो बच्चे कम होंगे.दिनेश शर्मा कहते हैं, “एक तो सरकारी स्कूल में शिक्षक नहीं हैं और दूसरे आपने उन्हीं गांवों में प्राइवेट स्कूलों मान्यता दे रहे हैं जहां कोई मानक पूरा नहीं हो रहा है.तो अभिभावक भी उन स्कूलों में बच्चों को भेज देता है.दूसरी बात ये कि इस बार से सरकार ने बच्चों के एडमिशन की आयु कम कर दी है जिसकी वजह से दस लाख एनरोलमेंट कम हो गए हैं.सच्चाई ये है कि सरकार चाहती है कि उसे स्कूल न चलाना पड़े, अध्यापकों को वेतन न देना पड़े, सिर्फ इसलिए विद्यालय बंद कर रहे हैं.पूरी शिक्षा व्यवस्था को वो प्राइवेट हाथों में देना चाहते हैं”क्या कहता है आरटीई कानून? आरटीई यानी शिक्षा के अधिकार कानून के तहत 300 की आबादी वाले गांव में एक किलोमीटर के दायरे में 6-14 साल तक के बच्चों के लिए स्कूल अनिवार्य किया गया था.इसके तहत हर किमी के दायरे में प्राइमरी स्कूल खुले और तीन किमी के दायरे और एक हजार की आबादी वाले गांवों में जूनियर हाईस्कूल खोले गए.मार्च 2018 में संसद में एक सवाल के लिखित जवाब में सरकार ने बताया था कि साल 2016 तक उत्तर प्रदेश में 1,62,645 प्राइमरी स्कूल थे जिनमें से 34,151 स्कूल ऐसे थे जिनमें 50 से कम बच्चे पढ़ रहे थे.कुछ साल बाद ये आंकड़े और कम हो गए.आज भी पीरियड्स में स्कूल छोड़ने को क्यों मजबूर हैं कई लड़कियांअभी इसी साल फरवरी में केंद्र सरकार ने लोकसभा में बताया था कि पिछले 10 साल में देश भर में करीब नब्बे हजार सरकारी स्कूल बंद हुए हैं जिनमें करीब 25 हजार स्कूल अकेले उत्तर प्रदेश में हैं. इसीलिए यूपी सरकार ने 50 बच्चों से कम वाले प्राइमरी स्कूलों को दूसरे स्कूलों में विलय का निर्देश दिया है.विलय के लिए सरकार ने पचास बच्चों की संख्या को मानक बनाया है लेकिन कुछ स्कूल ऐसे हैं जहां ज्यादा बच्चे होने के बावजूद मर्जर स्कीम में ला दिए गए हैं.शिक्षा के निजीकरण की साजिश उत्तर प्रदेश प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष विनय कुमार सिंह कहते हैं कि सौ से ज्यादा बच्चों वाले स्कूलों का भी मर्जर किया गया है.डीडब्ल्यू से बातचीत में वो कहते हैं, “मर्जर का यह काम पूरी तरह से मनमाने तरीके से हो रहा है.शाहजहांपुर के एक स्कूल में 128 बच्चे थे लेकिन उसका भी मर्जर कर दिया गया.पहले की सरकारों ने तो स्कूल खोले, अच्छे स्कूल बने, बाउंड्री बनी.लेकिन अब उन्हें बंद करने की मुहिम चल रही है.इतने दिनों से अध्यापकों ने अपने प्रयास से और अभियान चलाकर बच्चों की संख्या बढ़ाई लेकिन सरकार उन्हें बंद करके स्कूलों की इमारत में बाल वाटिका खोल रही है” विनय कुमार सिंह कहते हैं, “जहां बच्चे न हों, इमारत जर्जर हो, वहां मर्जर करना समझ में आता लेकिन जहां बच्चे आ रहे हों, उन्हें विलय करने की क्या जरूरत है.सरकार को चाहिए कि ये देखे कि कैसे और किन परिस्थितियों में यहां के बच्चे पढ़ रहे हैं और अभिभावक पढ़ा रहे हैं.यहां बेहद गरीब तबके के बच्चे आते हैं.स्कूल बंद हो जाएंगे और बच्चों को दूर जाना पड़ेगा तो उनकी पढ़ाई छूट जाएगी लेकिन सरकार को उसकी चिंता है ही नहीं.हर साल हजारों टीचर रिटायर हो रहे हैं लेकिन नियुक्ति नहीं हो रही है”राज्य सरकार के इस फैसले का राजनीतिक दल भी विरोध कर रहे हैं.समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने इसकी तीखी आलोचना की है.समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस नीति को पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को शिक्षा के अधिकार से वंचित करने की साजिश करार दिया है.