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challenging china s dominance, India Japan will revolutionize the EV supply chain चीन के दबदबे को चुनौती, भारत-जापान EV सप्लाई चेन में करेंगे क्रांति, Business Hindi News

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China Vs India-Japan: भारत और जापान की बैठक का मकसद चीन द्वारा कुछ दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों का सामूहिक रूप से जवाब देना है। इस बैठक में पैनासोनिक, मित्सुबिशी, सुमितोमो और असाही कासेई जैसी बड़ी जापानी कंपनियां शामिल हैं।

Drigraj Madheshia हिन्दुस्तान टीमTue, 1 July 2025 07:18 AM

भारत और जापान की कंपनियां इस सप्ताह दिल्ली में एक महत्वपूर्ण बैठक कर रही हैं। इस बैठक का मकसद चीन द्वारा कुछ दुर्लभ खनिजों के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंधों का सामूहिक रूप से जवाब देना है।इस बैठक में पैनासोनिक, मित्सुबिशी, सुमितोमो और असाही कासेई जैसी बड़ी जापानी कंपनियां शामिल हैं।

ये सभी कंपनियां इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की बैटरियों और जरूरी खनिजों की आपूर्ति से जुड़ी हुई हैं। ये कंपनियां भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर काम करने की संभावना तलाशने के लिए भारत आई हैं। भारत की तरफ से अमारा राजा और रिलायंस जैसी कंपनियां इन चर्चाओं में हिस्सा ले रही हैं।

क्या होगा बैठक में

इस बैठक में मुख्य रूप से इलेक्ट्रिक कारों और बिजली भंडारण के लिए इस्तेमाल होने वाली लिथियम-आयन बैटरियों के लिए नई सप्लाई चेन बनाने पर चर्चा होगी। साथ ही, लिथियम और ग्रेफाइट जैसे जरूरी खनिजों की आपूर्ति को भी सुरक्षित करने के तरीकों पर बात होगी। चूंकि चीन इन बाजारों में बहुत मजबूत है (दुनिया की लगभग 80% लिथियम बैटरियां चीन में बनती हैं), इसलिए भारत और जापान मिलकर चीन के प्रभुत्व को कम करने के लिए नई तकनीक पर साथ काम करने और संयुक्त रिसर्च करने की योजना भी बना सकते हैं।

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बैठक इसलिए भी जरूरी

भारत के लिए यह बैठक इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि अप्रैल में चीन के प्रतिबंधों के बाद से भारतीय कंपनियों को इन दुर्लभ खनिजों को मंगवाने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। वर्तमान में, भारत की ईवी कंपनियां अपनी जरूरत की 75% से भी ज्यादा बैटरियां चीन से खरीदती हैं। बाकी की आपूर्ति दक्षिण कोरिया और जापान जैसे देशों से होती है।

भारत सरकार ने 2021 में देश में बैटरी बनाने को बढ़ावा देने के लिए लगभग 18,100 करोड़ रुपये की एक बड़ी योजना (पीएलआई) भी शुरू की थी। ओला इलेक्ट्रिक, रिलायंस और राजेश एक्सपोर्ट्स जैसी कंपनियों को बड़े पैमाने पर बैटरी फैक्ट्रियां (गीगाफैक्ट्री) लगाने की मंजूरी मिली थी। हालांकि, अभी तक इनमें से कोई भी कंपनी इस योजना के तहत तय किए गए लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाई है और सभी अपनी उत्पादन शुरू करने की तारीख से पीछे चल रही हैं।

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