पटना. बिहार के इतिहास में 1990 से 2005 का दौर ‘जंगलराज’ के नाम से कुख्यात है और चंपा विश्वास कांड इस काल के सबसे शर्मनाक अध्यायों में से एक है. यह कहानी 2 नवंबर 1995 में से शुरू होती है जब एक दलित बिरादरी के प्रतिभाशाली आईएएस अधिकारी बीबी विश्वास की पोस्टिंग पटना में हुई जहां उन्हें समाज कल्याण विभाग का सचिव बनाया गया. उनके पड़ोस में आरजेडी की ताकतवर विधायक और लालू यादव की करीबी हेमलता यादव का घर था जिसने इस कुकृत्य की पटकथा लिखी थी. कहानी में मोड़ 7 सितंबर 1995 को आया जब हेमलता यादव ने बीबी विश्वास की पत्नी चंपा विश्वास को अपने घर बुलाया. वहां उसके बेटा मृत्युंजय यादव ने पहली बार चंपा विश्वास के साथ बलात्कार किया. यह सिर्फ शुरुआत थी. अगले दो साल (1995-1997) तक मृत्युंजय ने चंपा विश्वास, उनकी भतीजी, मां और घर की दो नौकरानियों के साथ बार-बार यौन शोषण किया. इसके बाद तो चंपा विश्वास और उनके परिवार का जीवन दहशत में डूब गया. हेमलता के खौफ और अवैध संतान के डर ने उसने नसबंदी तक करवा ली.
चंपा विश्वास रेप केस का पूरा वाकया
मृत्युंजय यादव की नजर चंपा विश्वास पर पड़ी तो वह अपनी हवस का शिकार बनाने की साजिश रचने में जुट गया. आरोप के अनुसार, चंपा से बलात्कार की शुरुआत 7 सितंबर 1995 तब शुरू हुई जब हेमलता यादव अपने घर में मौजूद थीं. उनका फोन आईएएस की पत्नी चंपा विश्वास के पास आता है और फोन पर कहती हैं, नौकर की हालत खराब है, इसलिए कुछ सहयोग करने के लिए घर पर आ जाइये. चंपा जैसे ही हेमलता के घर पर पहुंचती हैं वो उन्हें एक कमरे में ले जाती हैं और झट से बाहर से दरवाजा बंद कर देती हैं. कमरे के अंदर हेमलता का बेटा मृत्युंजय यादव चंपा से जबरन रेप करता है. यह सब उस समय होता है जब कुछ आरजेडी नेता उसी दौरान हेमलता के घर पर मौजूद थे.
हेमलता यादव के घर पर बुलाकर चंपा विश्वास से बलात्कार करने का आरोप मृत्युंजय यादव पर लगा था. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
जब चाहता घर पर धमक जाता था वह
आईएएस लॉबी ने भी नहीं दिया साथ
हालांकि, आईएएस बीबी विश्वास घुटते रहते हैं और इसके बाद वह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों से इस बात की चर्चा करते हैं. खास बात यह कि पुलिस अधिकारी एक आईएएस की सहायता करने के बदले उन्हें चुप रहने और सबकुछ सहते रहने की सलाह देते हैं. वर्ष 1995 से 1997 तक लगातार चंपा विश्वास वहसी मृत्युंजय यादव के हवस का शिकार होती रहती हैं. हेमलता का क्रूर आतंक इस कदर था कि अवैध संतान न हो जाए इससे बचने के लिए वो नसबंदी करवा लेती है.
सुशील मोदी के सवाल और राज्यपाल की पहल

दिवंगत सुशील कुमार मोदी ने चंपा विश्वास बलात्कार कांड को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में लालू यादव को घेरा था.
हेमलता यादव फरार, मामला सुर्खियों में रहा
इसके बाद हेमलता यादव फरार हो गईं, लेकिन मामला मीडिया में भी सुर्खियों में बना रहा. दो महीने तक हेमलता यादव फरार रहीं और बाद में अपने अनुसार हेमलता ने सरेंडर किया. 5 साल बाद मृत्युंजय और हेमलता 3 साल जेल में रहीं. उसके बाद दोनों जमानत पर जेल से बाहर आ गए. इस बीच पटना लोकल कोर्ट का फैसला सुनाया जिसमें मृत्युंजय यादव को 10 साल और हेमलता यादव को 3 साल की सजा मिली. चूंकि हेमलता पहले ही तीन साल जेल में रह चुकी थीं इसलिए हेमलता को दोबारा जेल जाने की जरूरत नहीं पड़ी.
आरोपी मां-बेटे को मिली थी हाईकोर्ट से राहत
वह दौर जब सत्ता का दुरुपयोग यहां आम था
किसी ने चंपा और डीडी विश्वास का साथ नहीं दिया. नतीजा यह निकला कि नेता के परिवार को हाईकोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया. हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में उसे बरी करने का आदेश दिया था जो पीड़िता और उनके परिवार के लिए एक और झटका था. खास बात यह कि लालू यादव की सरकार की भूमिका इस मामले में बेहद संदिग्ध रही. हेमलता यादव समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष थीं. अपने बेटे के अपराध को छिपाने में लगी रहीं. लालू यादव की चुप्पी और पुलिस की निष्क्रियता ने साफ कर दिया कि सत्ता का दुरुपयोग यहां आम था. 1990 के दशक में लालू ने यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण से सत्ता हासिल की थी, लेकिन उनके शासन में अपराधियों को संरक्षण मिलने की खबरें आम हो गईं.

कोलकाता में गुमनामी का जीवन जी रही हैं चंपा विश्वास. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
सत्ता और अपराध के गठजोड़ का बड़ा उदाहरण
चंपा विश्वास कांड: जंगलराज का दर्दनाक सबूत
चंपा विश्वास कांड बिहार के जंगलराज का एक दर्दनाक सबूत है जहां सत्ता और अपराध का गठजोड़ पीड़ितों को न्याय से वंचित कर देता था. 1990-2005 के बीच बिहार में कानून का राज खत्म हो चुका था और यह घटना उस काल के घावों को आज भी ताजा करती है. क्या यह सत्ता का दुरुपयोग था या सिस्टम की विफलता? जवाब शायद इतिहास के पन्नों में ही दबा हुआ है, लेकिन चंपा की चीखें आज भी बिहार की सियासत में गूंजती हैं.