आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पहले डॉक्टर थे मधुसूदन गुप्ता.
पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री और जाने-माने चिकित्सक डॉ. विधानचंद्र राय की जयंती और राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का संयोग अद्भुत है. भारत में हर साल एक जुलाई को आधुनिक डॉक्टरों की सेवाओं का सम्मान करने के लिए यह दिवस मनाया जाता है. वैसे भारतीय चिकित्सा विज्ञान की जड़ें काफी गहरी हैं पर आधुनिक काल में भारत का पहला डॉक्टर कौन था और चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति कैसे लाया? यह सवाल हर किसी के मन में कौंधता होगा. आइए ढूंढ़ने की कोशिश करते हैं इसी सवाल का जवाब.
दुनिया की सभी प्राचीन सभ्यताओं का अपनी-अपनी चिकित्सा प्रणाली रही है पर भारत का दवाओं का प्राचीन सिस्टम सबसे अधिक व्यवस्थित माना जाता है. भारत में चिकित्सा विज्ञान का इतिहास ईसा से 1500 पूर्व से मिलता है. वैदिक काल में चारों वेदों, उनके ब्राह्मण, अरण्यक और उपनिषदों में इसकी भरमार है. अथर्व वेद में शरीर के कई अंगों के बारे में जानकारी मिलती है. वैदिक काल में ही भारतीय चिकित्सा विज्ञान अधिक व्यवस्थित हुआ और भारतीय दवाओं की सारी जानकारियां आयुर्वेद में समाहित मिलती हैं.
आयुर्वेद के चिकित्सकों को वैद्य कहा गया. वैसे आयुर्वेद के लिए ज्यादातर इतिहासकार संस्कृत में लिखी गई दो पुस्तकों का जिक्र करते हैं, जिनमें एक है चरक संहिता और दूसरी सुश्रुत संहिता. इनमें से चरक संहिता के लेखक और अपने समय के जाने-माने वैद्य (चिकित्सक) राजा कनिष्क के दरबारी थे. वहीं, एक और प्राचीन भारतीय चिकित्सक सुश्रुत ने दुनिया को सुश्रुत संहिता जैसी चिकित्सा विज्ञान की पुस्तक की.
डॉ. मधुसुदन गुप्ता थे पहले भारतीय डॉक्टर
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के पहले डॉक्टर थे मधुसूदन गुप्ता. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में एक जाने-माने वैद्य परिवार में उनका जन्म 1800 में हुआ था. उनके दादा हुगली के नवाब के पारिवारिक चिकित्सक थे. दिसंबर 1826 में डॉ. मधुसूदन ने संस्कृत कॉलेज में नए-नए खुले आयुर्वेदिक कोर्स में प्रवेश लिया. इसकी पढ़ाई में उन्होंने अभूतपूर्व प्रतिभा दिखाई. मई 1830 में उनको वहीं पर शिक्षक बना दिया गया.
पश्चिमी पद्धति के पहले मेडिकल कॉलेज में पहले भारतीय शिक्षक
भारत के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम वेंटिंक के समय में 28 जनवरी 1835 को कलकता में चिकित्सा शिक्षा की एक नई शुरुआत हुई और पश्चिमी शिक्षा पद्धति की पढ़ाई के लिए कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की नींव रखी गई. 17 मार्च 1835 को मधुसूदन गुप्ता को इस कॉलेज में स्थानीय शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिली. अगले चार सालों तक 14 से 20 साल उम्र के 50 लोगों को इस नए मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई का मौका मिला.

कलकत्ता मेडिकल कॉलेज की शुरुआत हुई तो डॉ. मधुसूदन को शिक्षक नियुक्त किया गया.
मधुसूदन गुप्ता ने एशिया में किया था पहला डिसेक्शन
यह उस दौर की बात है जब हिन्दुओं में मनुष्य के शरीर की चीरफाड़ निषिद्ध था. वहीं, पश्चिमी चिकित्सा पद्धति में सर्जरी का अहम स्थान था. ऐसे में द्वारकानाथ टैगोर और राजा राम मोहन राय की मदद से कलकत्ता मेडिकल कॉलेज ने सर्जरी के लिए लोगों को तैयार करने की ठानी. तय हुआ कि अगर भारतीय पारंपरिक साहित्य में सर्जरी का जिक्र मिलता है तो ही इसे आगे बढ़ाया जाएगा. इसे ढूंढ़ने का जिम्मा दिया गया मधुसूदन गुप्ता को.
इसके बाद 10 जनवरी 1836 को मधुसूदन गुप्ता ने पहली बार कैडवरिक डिसेक्शन किया. भारत ही नहीं, पूरे एशिया में यह पहला डिसेक्शन था. इस उपलब्धि को अंग्रेजों के कलकत्ता (अब कोलकाता) में आउटपोस्ट फोर्ट विलियम में 50 गन की सलामी दी गई और इस तरह से भारत में पश्चिमी चिकित्सा पद्धति शुरू हुई.
देश की पहली महिला डॉक्टर थीं आनंदीबाई जोशी
डॉ. मधुसूदन गुप्ता अगर देश के पहले डॉक्टर थे तो आनंदीबाई गोपालराव जोशी देश की पहली महिला डॉक्टर थीं. वह पहली भारतीय महिला थीं, जिन्होंने पश्चिमी चिकित्सा पद्धति की पढ़ाई अमेरिका से की थी. उन्होंने भारत और अमेरिका में बहुत सी महिलाओं को यह क्षेत्र अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. जन्म के बाद आनंदीबाई का नाम यमुना रखा गया था पर नया नाम उन्हें उनके पति गोपालराव जोशी ने दिया था, जिनसे उनकी शादी केवल नौ साल की उम्र में हो गई थी.
हालांकि, गोपालराव प्रगतिशाली सोच के धनी थे और उन्होंने अपनी पत्नी को पढ़ने के लिए एक मिशनरी स्कूल में भेजा. बाद में उनके साथ कलकत्ता चले गए, जहां आनंदीबाई ने संस्कृत और अंग्रेजी सीखी.

आनंदीबाई ने अमेरिका के पेनसिलवेनिया में वूमेंस मेडिकल कॉलेज से एमडी पढ़ाई पूरी की.
एमडी की पढ़ाई पूरी की
1800 के दशक में किसी के लिए यह सोचना भी कठिन था कि वह अपनी पत्नी को पढ़ाएगा, तब गोपालराव ने फैसला लिया कि वह अपनी पत्नी को मेडिसिन की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजेंगे. उन्होंने ऐसा किया भी. हालांकि, उसी समय आनंदीबाई की तबीयत खराब रहने लगी थी पर गोपालराव ने उनसे अमेरिका जाकर देश की दूसरी औरतों के लिए उदाहरण बनने के लिए कहा.
अमेरिका में आनंदीबाई ने पेनसिलवेनिया के वूमेंस मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया और 19 साल की उम्र में दो वर्षीय मेडिसिन की पढ़ाई पूरी कर ली. साल 1886 में उन्होंने एमडी की डिग्री हासिल की. हालांकि, डॉ. आनंदीबाई को कभी मेडिकल की प्रैक्टिस करने का मौका नहीं मिला, क्योंकि टीबी जैसी बीमारी के कारण 26 फरवरी 1887 को 21 साल की बेहद कम उम्र में उनका निधन हो गया.
कादंबिनी गांगुली ने भारत में हासिल की थी शिक्षा
कई बार देश की पहली महिला डॉक्टर के रूप में कादंबिनी गांगुली का नाम लिया जाता है. हालांकि, ऐसा नहीं है. कादंबिनी गांगुली देश की ऐसी पहली महिला डॉक्टर थीं, जिन्होंने देश में ही शिक्षा हासिल की थी और बाकायदा लोगों का इलाज भी किया. वहीं, आनंदीबाई जोशी देश की पहली महिला डॉक्टर और विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला थीं.
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