दिल्ली-NCR में सबसे ज्यादा 12 mm बारिश फरीदाबाद में हुई है.
पहाड़ लेकर मैदान तक मानसून की बारिश तबाही मचा रही है. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बारिश के बाद नदियां उफान पर हैं. कई रास्ते बंद हैं. मैदानी क्षेत्रों में सड़कें तालाब बनी हुई हैं. दिल्ली-NCR में भी बारिश के बाद लोगों को राहत मिली. सबसे ज्यादा 12 mm बारिश फरीदाबाद में और इसके बाद 11 mm गुरुग्राम में हुई. बारिश को मिलीमीटर यानी mm में मापा जाता है.
मौसम विभाग की तरफ से मिलीमीटर में जारी होने वाला वाला आंकड़ा बताता है कि उस क्षेत्र में कितनी बारिश हुई है. अब सवाल यह भी है कि मौसम विभाग को कैसे पता चलता है कि किस क्षेत्र में कितनी बारिश हुई है, उसका कैल्कुलेशन कैसे होता है और इसे मिलीमीटर में क्यों मापते हैं. आइए आसान भाषा में समझते हैं इसका जवाब.
कहां-कितनी बारिश हुई, कैसे पता चलता है?
कहां पर कितनी बारिश हुई, कई तरीकों से इसका पता लगाया जाता है, लेकिन सबसे कॉमन है रेन गेज. यह एक बर्तन जैसा इक्विपमेंट होता है. इसे खुले में रखा जाता है. इसमें जितना भी पानी भरता है उसके आधार पर रेनफॉल की जानकारी दी जाती है.
मान लीजिए रेन गेज में 10 मिमी तक पानी इकट्ठा हुआ है तो माना जाएगा कि 10 मिमी बारिश हुई है. रेन गेज भी दो तरह के होते हैं. पहला, जिससे मैनुअली रेनफॉल मापा जाता है. दूसरा, ऑटोमेटिक. इसमें लगे सेंसर बताते हैं कि बारिश कितनी हुई.

रेन गेज से रेनफॉल का पता चलता है.
दूसरा तरीका है डॉप्लर वेदर रडार. नेशनल ओशियानिक एंड एटमॉस्फरिक एडमिनिस्ट्रेशनप (NOAA) की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, रडार एक एंटीना होता है जो चारों दिशाओं में माइक्रोवेव के सिग्नल भेजता रहता है. ये सिग्नल बूंदों, बर्फ और ओलो से टकराकर वापस आते हैं और कुछ सिग्नल उसी दिशा में लौट जाते हैं. इसे इको कहते हैं. लौटने वाले सिग्नल और उसके समय के आधार पर पता चलता है कि बारिश कितनी हुई. कितनी देर तक हुई.
रडार सिस्टम का इस्तेमाल बड़ी जगहों के लिए किया जाता है. यह बड़ी जगहों को एक साथ कवर कर लेता है. यही वजह है कि मौसम विभाग इसके डेटा का इस्तेमाल भविष्यवाणी करने या चेतावनी देने में करता है.
सैटेलाइट डाटा भी बताता है बारिश का हाल
सैटेलाइट डाटा भी बारिश का हाल बताता है. इसका इस्तेमाल खासतौर पर उन जगहों के लिए किया जाता है जहां पर ग्राउंड स्टेशन नहीं होते . जैसे- पहाड़ या समुद्र. यहां से मिलने वाली जानकारी के कारण मौसम विभाग बुलेटिन जारी करता है. इसके अलावा ऑटोमेटिक वेदर स्टेशन के बारिश, तापमान और हवा का रिकॉर्ड होने वाला डाटा भी मौसम की जानकारी देता है.

बारिश को एमएम में मापते हैं क्योेकि यह एक इंटरनेशनल यूनिट है.
बारिश को मिलीमीटर में ही क्यों मापते हैं?
अक्सर बारिश के बाद मौसम विभाग बताता है कि शहर में कितने मिलीमीटर यानी मिमी (mm) बारिश हुई. अगर मौसम विभाग कहता है कि आपके क्षेत्र में 10 मिमी बारिश हुई है तो इसका मतलब है कि 10 मिमी बारिश मतलब 1 वर्ग मीटर क्षेत्र में 10 लीटर पानी गिरा है.
बारिश को आमतौर पर मिलीमीटर में इसलिए मापते हैं क्योंकि mm एक साइंटिफिक और इंटरनेशनल यूनिट है. दुनियाभर में बारिश को मिलीमीटर में मापा जाता है. ऐसा इसलिए भी करते हैं क्योंकि राज्य, शहर या देश की बारिश की आपस में तुलना करना अधिक आसान होता है.
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