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Bihar Chunav: बिहार में फिर वही खतरनाक सियासत शुरू! इटावा कांड के बहाने ‘आग’ भड़काने का खेल समझिये और सावधान रहिये

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Bihar Caste Politics: उत्तर प्रदेश के इटावा कांड ने अब बिहार की सियासत में आग लगा दी है. मोतिहारी के टिकुलिया गांव में ब्राह्मणों के पूजा-पाठ पर रोक का बोर्ड और ब्रह्मेश्वर मुखिया को लेकर तेजर होती सियासत ने बि…और पढ़ें

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव.

हाइलाइट्स

  • सियासी दलों की चुनावी रणनीति के तहत 2025 विधानसभा चुनाव में जातीय गोलबंदी का नया दांव.
  • मोतिहारी में ब्राह्मणों पर पूजा-पाठ की रोक का बोर्ड, क्या बिहार में जातीय तनाव भड़काने की साजिश?
  • ब्रह्मेश्वर मुखिया विवाद को दी जा रही हवा, रणवीर सेना के भूत ने फिर गरमाई बिहार की सियासत.

पटना. बिहार की सियासत हमेशा से जातीय समीकरणों के आधार पर सुलगती रही है और उत्तर प्रदेश के इटावा कांड ने इस आग में नया तेल छिड़क दिया है. मोतिहारी के टिकुलिया गांव में ब्राह्मणों के पूजा-पाठ पर रोक का बोर्ड लगना और ब्रह्मेश्वर मुखिया को लेकर बढ़ता विवाद इस बात का संकेत है कि बिहार को फिर से जातीय तनाव की आग में झुलसाने की तैयारी है. क्या यह सब 2025 के विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है? पहले इसकी पृष्ठभूमि को समझते हैं. दरअसल यूपी के इटावा में 21 जून 2025 को हुई घटना ने बिहार की सियासत को हिलाकर रख दिया है. इटावा के दादरपुर गांव में यादव कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके सहयोगी संत सिंह यादव के साथ मारपीट, चोटी काटने और अपमान का मामला सामने आया क्योंकि वे ब्राह्मण नहीं यादव थे. इस घटना ने जातीय तनाव को हवा दी और इसका असर बिहार के मोतिहारी तक पहुंचा. टिकुलिया गांव में ग्रामीणों ने ब्राह्मणों के पूजा-पाठ पर रोक का बोर्ड लगा दिया, जिसमें कहा गया कि वे केवल वेद-शास्त्रों के सच्चे जानकारों का स्वागत करेंगे चाहे वे किसी भी जाति के हों. यह कदम इटावा कांड के जवाब में पाखंड और धर्म के व्यावसायीकरण के विरोध के रूप में लिया गया बताया जा रहा है, लेकिन हकीकत यह है कि इसने बिहार में जातीय ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे दिया है.

इस बीच ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम फिर से बिहार की सियासत में तूफान है. रणवीर सेना के प्रमुख रहे मुखिया की 2012 में हत्या हुई थी, 1990 के दशक में कथित नरसंहारों के लिए चर्चित रहे थे. हाल ही में उनके महिमामंडन वाले पोस्टर में PM मोदी और नीतीश कुमार की तस्वीरें थीं. इसने दलित-पिछड़े वर्गों में रोष पैदा किया और RJD ने इसे लपक लिया. राजद ने इसे अगड़ा-पिछड़ा तनाव भड़काने की साजिश करार दिया, जबकि कुछ X पोस्ट्स में ब्राह्मण और भूमिहार समाज को आत्मरक्षा के लिए मुखिया जैसा प्रतिकार करने की बात कही गई. यह विवाद बिहार की सियासत को 90 के दशक की हिंसक यादों की ओर धकेल रहा है.

सारिका पासवान-आशुतोष कुमार विवाद क्या है?

वहीं, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) की प्रवक्ता सारिका पासवान और भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच फाउंडेशन के अध्यक्ष आशुतोष कुमार के बीच विवाद ने बिहार की सियासत में हलचल मचा दी है. सारिका ने आरोप लगाया कि आशुतोष ने उनके खिलाफ सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी की, जिसके बाद उन्होंने पटना के SC-ST थाने में FIR दर्ज कराई. यह विवाद तब शुरू हुआ जब सारिका ने रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्मेश्वर मुखिया के खिलाफ बयान दिया था. इसके जवाब में आशुतोष ने कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिसे RJD ने दलित और नारी अपमान करार दिया. आशुतोष ने अपनी टिप्पणी पर खेद जताया, लेकिन इसे अपनी IT टीम की गलती बताया. यह मामला 2025 विधानसभा चुनाव से पहले जातीय तनाव को भड़काने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है.

मोतिहारी के गांव में ब्राह्मणों के पूजा करने पर प्रतिबंध लगाया गया है जिससे जातीय तनाव की आशंका है.

सियासी दल लहका रहे, सरकार बुझा रही

वहीं, 2025 के विधानसभा चुनाव से इसका कनेक्शन साफ दिखता है. बिहार में जातीय गोलबंदी हमेशा से चुनावी रणनीति का हिस्सा रही है. इटावा कांड और टिकुलिया की घटना ने ब्राह्मण, यादव और अन्य जातियों के बीच तनाव को हवा दी है जिसे सियासी दल अपने फायदे के लिए भुनाने की कोशिश में हैं. RJD और इसके नेता तेजस्वी यादव इस मुद्दे को PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के मुद्दे के रूप में पेश कर रहे हैं, ताकि यादव और अन्य पिछड़े वर्गों को एकजुट किया जाए. दूसरी तरफ, BJP और JDU नीतीश कुमार के नेतृत्व में इस तनाव को शांत करने की कोशिश कर रहे हैं.

खून से रंगा हुआ है जातीय संघर्ष का इतिहास

टिकुलिया की घटना और मुखिया विवाद ने सवर्ण वोटरों में असुरक्षा की भावना पैदा की है जिसे BJP और JDU अपने पक्ष में करने की कोशिश कर सकते हैं. वहीं, RJD इस मौके को यादव और अन्य पिछड़े वर्गों को गोलबंद करने में इस्तेमाल कर रहा है. लेकिन,यह सियासी खेल खतरनाक हो सकता है. बता दें कि 90 के दशक में रणवीर सेना और नक्सली हिंसा ने बिहार को खून से रंग दिया था. ब्रह्मेश्वर मुखिया का नाम फिर से उछलने से पुरानी यादें ताजा हो रही हैं. अगर यह तनाव बढ़ा तो बिहार फिर से हिंसक जातीय संघर्ष की चपेट में आ सकता है जो 2025 के चुनाव को और जटिल बना देगा.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

चुनावी रणनीति का हिस्सा है ये खतरनाक खेल!

दूसरी तरफ ओर विपक्षी महागठबंधन, खासकर राजद, इस तनाव को भुनाकर सत्ता में वापसी की कोशिश कर रहा है. लेकिन उनकी रणनीति में भी खतरा है. अगर जातीय तनाव हिंसा में बदला तो यह तेजस्वी यादव की ए टू जेड वाली छवि को नुकसान पहुंचा सकता है. BJP ने भी इस मुद्दे पर RJD को जातिवाद का जहर घोलने का आरोप लगाया है जिससे सियासी पारा और चढ़ गया है. बहरहाल, इटावा कांड और ब्रह्मेश्वर मुखिया विवाद ने बिहार को एक बार फिर जातीय आग की कगार पर ला खड़ा किया है. यह सियासी दलों के लिए 2025 के चुनाव की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, लेकिन इसका परिणाम बिहार के सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक हो सकता है.

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Vijay jha

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट…और पढ़ें

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