‘एनकाउंटर’ की कहानी: अफवाह या असलियत?
बात है उन दिनों की जब यादव-राजपूत राजनीति में खाई थी और प्रभुनाथ सिंह, आनंद मोहन के साथ मिलकर बिहार पीपुल्स पार्टी बना चुके थे. लालू को लगा कि ये लोग राजपूतों को लामबंद करके सियासी ज़मीन खिसका सकते हैं. कुछ लोग कहते हैं जब एनकाउंटर की आहट आई, तो प्रभुनाथ सीधे एक जज के घर में शरण ले लिए. अफसरों का काफिला वहीं से वापस लौटा और गोली चलने से पहले बंदूकें झुक गईं. हालांकि ये दावा कोई अदालत में साबित नहीं हुआ, लेकिन बिहार की पब्लिक मेमोरी में ये किस्सा आज भी मिर्च-मसाला के साथ जिंदा है.
राजपूतों के ‘शेर’: छपरा से मसरख तक चलता था सिक्का
अनसुने किस्से जो आज भी गूंजते हैं
प्रभुनाथ सिंह को लेकर कई किस्से हैं. ऐसे ही दो-तीन किस्से हैं. पटना के MLA फ्लैट में शादी थी, लेकिन शहर में खबर उड़ी कि ‘बम फटा है!’. पता चला, सिर्फ बारातियों की आवाज थी, लेकिन इसने प्रभुनाथ के खौफ को और बड़ा बना दिया. 2009 में एक आईएएस अधिकारी को ‘कफ़न खरीदने’ की धमकी देकर चर्चा में आ गए थे. बोले थे, ‘कफ़न खरीद लीजिए, चुनाव रोकिएगा तो…’ ये वीडियो काफी वायरल हुआ था. 2014 की हार पर खुद तंज कसते हुए कहा था ‘दुख हार का नहीं, एक बकरी से हार गया, यही मलाल है.’ तंज और दबंगई का मिला-जुला नमूना थे प्रभुनाथ.
आज वही प्रभुनाथ सिंह हजारीबाग सेंट्रल जेल में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. 1995 मसरख चुनाव के दिन हत्या के केस में सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में उन्हें दोषी ठहराया. अशोक सिंह हत्याकांड, जिसमें वो पहले बरी हुए थे, फिर सजा मिली. अब जेल की चारदीवारी से बाहर भले न हों, लेकिन सियासत में उनके परिवार का झंडा अभी भी लहरा रहा है. भाई केदार नाथ सिंह बनियापुर से विधायक हैं. बेटा रणधीर सिंह ने 2024 में आरजेडी छोड़ दिया और निर्दलीय चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. हालांकि वह चुनाव नहीं लड़े.