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भोगनाडीह की इन 5 जगहों पर आज भी जिंदा है हूल क्रांति की यादें

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Hul Diwas 2025: साल 1855 में जब भारत के बाकी हिस्सों में स्वतंत्रता संग्राम की आहट भी नहीं थी, तब संताल परगना के जंगलों और गांवों में सिदो-कान्हू, चांद-भैरव और फूलो-झानो के नेतृत्व में एक ललकार “अंग्रेजों भारत छोड़ो!” का नारा गूंज उठा था. यही ललकार भारत के पहले जनजातीय विद्रोह संताल हूल की पहचान बन गयी. इस आंदोलन की यादें आज भी उन पांच पवित्र स्थलों के रूप में जीवित हैं, जिन्हें हूल तीर्थ कहा जा सकता है. तो आइए आज हूल दिवस के अवसर पर आपको इन पांच जगहों के बारे में बताते हैं:

पंचकठिया

साहिबगंज के बरहेट प्रखंड में स्थित पंचकठिया में करीब 200 साल पुराना बरगद का पेड़ आज भी हूल क्रांति की गवाह है. इस पेड़ पर 26 जुलाई 1856 को महाजनी प्रथा और अंग्रेजी हुकूमत व साहूकारों के खिलाफ हूल का आगाज करने वाले सिदो मुर्मू को अंग्रेजों ने पकड़ कर फांसी पर लटकाया था.

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जन्मस्थली

भोगनाडीह में खपरैल का वह घर आज भी उसी जगह मौजूद है, जहां मिट्टी की दीवारों के बीच सिदो कान्हू, चांद, भैरव, फूलो व झानो का जन्म हुआ था. 11 अप्रैल 1815 की मध्य रात्रि को चुन्नू मुर्मू एवं सुनी हांसदा के घर सिदो मुर्मू का जन्म हुआ. सिदो-कान्हू के वंशज परिवार की सबसे बुजुर्ग महिला बिटिया हेंब्रम बताती हैं कि 30 जून 1855 को संताल हूल का पहली बार आगाज किया गया था.

कदमडांडी कुआं

हूल क्रांति का आगाज करने वाले सिदो-कान्हू के साथ 50 हजार से अधिक संताल क्रांतिकारियों की प्यास आंदोलन के दौरान भोगनाडीह स्थित कदमडांडी कुएं से बुझती थी. भूखे पेट कई किमी का लंबा सफर करने के बाद आंदोलनकारी जब भोगनाडीह पहुंचते थे, तो इसी कुएं के चारों ओर बैठकर बातचीत किया करते थे और अपनी प्यास बुझाते थे. हूल के दौरान रवाना होने से पहले सभी आंदोलनकारी इसी कुएं में स्नान व पूजा-पाठ भी करते थे.

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भोगनाडीह गांव का पार्क

भोगनाडीह गांव का पार्क, संताल हूल के लिए काफी पवित्र जगह है. सिदो-कान्हू ने इसी जगह से संताल हूल का आगाज किया था. यह जगह भोगनाडीह में सिदो-कान्हू के घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर स्थित है. यहां पर सिदो-कान्हू के अलावा उनके छोटे भाई चांद-भैरव और बहनें फूलो-झानो की भी अलग-अलग प्रतिमा लगायी गयी है.

सभा स्थल

Hul Diwas 2025
Hul diwas 2025

हूल आंदोलन के दौरान सिदो-कान्हू को जब भी लोगों तक अपनी बात पहुंचानी होती, तो सभा बुलायी जाती थी. इस सभा में दूर-दूर से लोग पहुंचते थे. सभा में आंदोलन की रणनीति तय होती थी. इसमें बताया जाता कि अंग्रेजी हुकूमत पर कब और कैसे प्रहार करना है. सारी योजनाएं सभा में भी ही तय की जाती थीं. सभा स्थल वर्तमान में सिदो-कान्हू पार्क के बगल में स्थित है.

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