पटना. बिहार के सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार ने RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के शासनकाल (1990-2005) को ‘अंधकार युग’ करार देते हुए तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा, लालू राज में बिहार में अपराध और भ्रष्टाचार का बोलबाला था. शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली सत्ता के संरक्षण में बेखौफ थे. प्रेम कुमार ने सीवान के तेजाब कांड का जिक्र करते हुए कहा कि चंदा बाबू जैसे परिवारों का दर्द उस दौर की सच्चाई है. अब जब बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं तो जंगलराज की खौफनाक यादों के साथ यह कांड फिर से चर्चा में है. दरअसल, चंदा बाबू की कहानी बिहार के उस अंधेरे दौर की गवाही देती है जब सत्ता और अपराध एक-दूसरे में गूंथे हुए थे. यह एक चेतावनी भी है कि लोकतंत्र में कानून का शासन कितना जरूरी है. बता दें कि बिहार के सीवान जिले का नाम सुनते ही एक दौर की खौफनाक यादें ताजा हो जाती हैं जब अपराध और सियासत का गठजोड़ इतना गहरा था कि कानून भी थरथराता था.
एक साधारण परिवार पर टूटी आफत
वर्ष 2004 की अगस्त की एक शाम शहाबुद्दीन के गुंडों ने चंदा बाबू की दुकान पर धावा बोला. वजह थी 2.5 लाख रुपये की रंगदारी, जिसे चंदा बाबू ने देने से इनकार कर दिया. उनके बेटों-सतीश, गिरीश और राजीव ने इसका विरोध किया. यह शहाबुद्दीन को नागवार गुजरा और सतीश और गिरीश को पकड़कर प्रतापपुर (मोहम्मद शहाबुद्दीन का गांव) के एक बगीचे में ले जाया गया जहां शहाबुद्दीन खुद मौजूद थे. उनके हुक्म पर दोनों भाइयों को पेड़ से बांधकर तेजाब से नहला दिया गया. उनकी चीखें आसमान तक गूंजीं, लेकिन शहाबुद्दीन और उनके गुंडों का दिल नहीं पसीजा. लाशों को टुकड़ों में काटकर बोरे में फेंक दिया गया. हालांकि, राजीव किसी तरह भाग निकले, लेकिन 2014 में जब वह अपने भाइयों के हत्यारों के खिलाफ गवाही देने की तैयारी में थे तो उन्हें भी गोली मार दी गई.
चंदा बाबू ने अंतिम सांस तक मोहम्मद शहाबुद्दीन को सजा दिलाने की लड़ाई लड़ी.
शहाबुद्दीन का खौफ: सीवान के ‘साहेब’
लालू-राबड़ी शासन में ‘जंगलराज’ की क्रूर सच्चाई
यह तेजाब कांड लालू यादव के शासनकाल (1990-2005) के ‘जंगलराज’ की सबसे खौफनाक मिसालों में से एक है. उस दौर में बिहार में अपराध और सियासत का गठजोड़ चरम पर था. शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली नेताओं को सत्ता का संरक्षण प्राप्त था जिसके कारण वे कानून से ऊपर थे. पुलिस और प्रशासन उनके सामने नतमस्तक थे. चंदा बाबू ने लालू से मदद मांगी, लेकिन उन्हें कोई सहारा नहीं मिला. लालू यादव ने शहाबुद्दीन को RJD का राष्ट्रीय महासचिव तक बनाया और उनकी पत्नी हिना शहाब की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी परवान चढ़ाया. यह जंगलराज का वह दौर था जब बिहार में विकास ठप था और अपराधियों का बोलबाला था.

प्रतीकात्मक तस्वीर.
चंदा बाबू के जीवन भर का दंश और उनकी जंग!
बिहार की सियासत पर बेहद गहरा असर!
चंदा बाबू के परिवार के साथ यह कांड बिहार की सियासत में एक काला धब्बा है. बाद के दौर में मोहम्मद शहाबुद्दीन की रिहाई और जेल के बाद भी उनके समर्थकों का काफिला और सीवान में उनका प्रभाव जंगलराज की याद दिलाता रहा. सत्ता के गलियारों में उनका रसूख देखा जाता रहा. नीतीश कुमार ने 2005 में सत्ता संभालने के बाद बाहुबलियों पर नकेल कसी जाने लगी, बावजूद इसके शहाबुद्दीन जैसे लोगों का प्रभाव लंबे समय तक रहा. लालू यादव और तेजस्वी यादव ने इस कांड को लेकर कभी खुलकर माफी नहीं मांगी जिसके कारण RJD पर जंगलराज का ठप्पा आज भी चर्चा में है.