होम राजनीति Bihar Chunav: चंदा बाबू के दोनों बेटों को पेड़ से बांधकर तेजाब से नहला दिया…’जंगलराज’ का यह खौफनाक कांड जानते हैं आप?

Bihar Chunav: चंदा बाबू के दोनों बेटों को पेड़ से बांधकर तेजाब से नहला दिया…’जंगलराज’ का यह खौफनाक कांड जानते हैं आप?

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पटना. बिहार के सहकारिता मंत्री प्रेम कुमार ने RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के शासनकाल (1990-2005) को ‘अंधकार युग’ करार देते हुए तीखा हमला बोला है. उन्होंने कहा, लालू राज में बिहार में अपराध और भ्रष्टाचार का बोलबाला था. शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली सत्ता के संरक्षण में बेखौफ थे. प्रेम कुमार ने सीवान के तेजाब कांड का जिक्र करते हुए कहा कि चंदा बाबू जैसे परिवारों का दर्द उस दौर की सच्चाई है. अब जब बिहार में विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हैं तो जंगलराज की खौफनाक यादों के साथ यह कांड फिर से चर्चा में है. दरअसल, चंदा बाबू की कहानी बिहार के उस अंधेरे दौर की गवाही देती है जब सत्ता और अपराध एक-दूसरे में गूंथे हुए थे. यह एक चेतावनी भी है कि लोकतंत्र में कानून का शासन कितना जरूरी है. बता दें कि बिहार के सीवान जिले का नाम सुनते ही एक दौर की खौफनाक यादें ताजा हो जाती हैं जब अपराध और सियासत का गठजोड़ इतना गहरा था कि कानून भी थरथराता था.

सीवान के गौशाला रोड पर चंदा बाबू का परिवार कभी सुख और समृद्धि का प्रतीक था. चंदा बाबू एक सम्मानित व्यवसायी थे जिनके पास दो दुकानें थीं. एक पर उनका बेटा सतीश बैठता था दूसरी पर गिरीश. उनका तीसरा बेटा राजीव और सबसे छोटा बेटा नीतीश परिवार के साथ रहते थे. लेकिन, 1990 के दशक में शहाबुद्दीन का आतंक सीवान में चरम पर था. वह RJD के सांसद थे और लालू प्रसाद यादव के करीबी जिनका सीवान में ‘साहेब’ के नाम से खौफ था. उनकी कही गई बात ही कानून थी और विरोध करने की कीमत जान से चुकानी पड़ती थी. चंदा बाबू का परिवार भी इसी खौफ का शिकार हुआ.

एक साधारण परिवार पर टूटी आफत

वर्ष 2004 की अगस्त की एक शाम शहाबुद्दीन के गुंडों ने चंदा बाबू की दुकान पर धावा बोला. वजह थी 2.5 लाख रुपये की रंगदारी, जिसे चंदा बाबू ने देने से इनकार कर दिया. उनके बेटों-सतीश, गिरीश और राजीव ने इसका विरोध किया. यह शहाबुद्दीन को नागवार गुजरा और सतीश और गिरीश को पकड़कर प्रतापपुर (मोहम्मद शहाबुद्दीन का गांव) के एक बगीचे में ले जाया गया जहां शहाबुद्दीन खुद मौजूद थे. उनके हुक्म पर दोनों भाइयों को पेड़ से बांधकर तेजाब से नहला दिया गया. उनकी चीखें आसमान तक गूंजीं, लेकिन शहाबुद्दीन और उनके गुंडों का दिल नहीं पसीजा. लाशों को टुकड़ों में काटकर बोरे में फेंक दिया गया. हालांकि, राजीव किसी तरह भाग निकले, लेकिन 2014 में जब वह अपने भाइयों के हत्यारों के खिलाफ गवाही देने की तैयारी में थे तो उन्हें भी गोली मार दी गई.

चंदा बाबू ने अंतिम सांस तक मोहम्मद शहाबुद्दीन को सजा दिलाने की लड़ाई लड़ी.

शहाबुद्दीन का खौफ: सीवान के ‘साहेब’

मोहम्मद शहाबुद्दीन सीवान में एक समानांतर सरकार चलाते थे. उनकी कोठी पर ‘कोर्ट’ लगता था जहां वह जमीनों पर कब्जा, रंगदारी और हत्याओं के फरमान सुनाते थे. पुलिस और प्रशासन उनके सामने बौने थे. वर्ष 2001 में, शहाबुद्दीन ने एक DSP को सार्वजनिक रूप से थप्पड़ मार दिया था और उनके गुंडों ने पुलिस पर AK-47 से हमला किया जिसमें दो पुलिसकर्मी मारे गए. लालू प्रसाद यादव की RJD सरकार में उनकी तूती बोलती थी. लालू के संरक्षण में वह बेखौफ होकर अपराधों का साम्राज्य चलाते थे. सीवान के लोग उनके नाम से कांपते थे. हालात ऐसे थे कि स्थानीय पत्रकारों तक को उनकी खबरें छापने से डर लगता था. जाहिर है चंदा बाबू जैसे साधारण लोग उनके सामने असहाय थे.

लालू-राबड़ी शासन में ‘जंगलराज’ की क्रूर सच्चाई

यह तेजाब कांड लालू यादव के शासनकाल (1990-2005) के ‘जंगलराज’ की सबसे खौफनाक मिसालों में से एक है. उस दौर में बिहार में अपराध और सियासत का गठजोड़ चरम पर था. शहाबुद्दीन जैसे बाहुबली नेताओं को सत्ता का संरक्षण प्राप्त था जिसके कारण वे कानून से ऊपर थे. पुलिस और प्रशासन उनके सामने नतमस्तक थे. चंदा बाबू ने लालू से मदद मांगी, लेकिन उन्हें कोई सहारा नहीं मिला. लालू यादव ने शहाबुद्दीन को RJD का राष्ट्रीय महासचिव तक बनाया और उनकी पत्नी हिना शहाब की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को भी परवान चढ़ाया. यह जंगलराज का वह दौर था जब बिहार में विकास ठप था और अपराधियों का बोलबाला था.

प्रतीकात्मक तस्वीर.

चंदा बाबू के जीवन भर का दंश और उनकी जंग!

चंदा बाबू ने अपने तीन बेटों को खो दिया, लेकिन हार नहीं मानी. अपनी पत्नी कलावती देवी के साथ, जो इस दुख से टूट चुकी थीं, उन्होंने शहाबुद्दीन के खिलाफ कानूनी जंग लड़ी. दिल्ली के वकील प्रशांत भूषण के सहयोग से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट तक अपनी लड़ाई पहुंचाई. वर्ष 2015 में शहाबुद्दीन और उनके तीन साथियों को तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा हुई. वर्ष 2017 में पटना हाई कोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा, लेकिन चंदा बाबू को यह जीत अधूरी लगी क्योंकि वह शहाबुद्दीन को फांसी की सजा दिलवाना चाहते थे. वर्ष 2020 में हार्ट अटैक से उनका निधन हो गया, और 2021 में शहाबुद्दीन की कोविड से मौत हो गई.

बिहार की सियासत पर बेहद गहरा असर!

चंदा बाबू के परिवार के साथ यह कांड बिहार की सियासत में एक काला धब्बा है. बाद के दौर में मोहम्मद शहाबुद्दीन की रिहाई और जेल के बाद भी उनके समर्थकों का काफिला और सीवान में उनका प्रभाव जंगलराज की याद दिलाता रहा. सत्ता के गलियारों में उनका रसूख देखा जाता रहा. नीतीश कुमार ने 2005 में सत्ता संभालने के बाद बाहुबलियों पर नकेल कसी जाने लगी, बावजूद इसके शहाबुद्दीन जैसे लोगों का प्रभाव लंबे समय तक रहा. लालू यादव और तेजस्वी यादव ने इस कांड को लेकर कभी खुलकर माफी नहीं मांगी जिसके कारण RJD पर जंगलराज का ठप्पा आज भी चर्चा में है.

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