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Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति के लिए 29 जून का दिन ‘सुपर रविवार’ कहा जाना चाहिये क्योंकि चिराग पासवान, तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा की रैलियां हैं. इसके साथ ही वक्फ संशोधन बिल और शिवाजी स्मारक विवाद को…और पढ़ें
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले उपेंद्र कुशवाहा, चिराग पासवान और तेजस्वी यादव के तीन बड़े कार्यक्रम.
हाइलाइट्स
- RJD नेता तेजस्वी यादव पटना में वैश्य सम्मेलन के जरिये सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश करेंगे.
- चिराग पासवान का राजगीर में बहुजन भीम समागम, LJPR के लिए दलितों को मजबूत करने की कवायद.
- गया में उपेंद्र कुशवाहा की परिसीमन रैली, कोइरी समाज को लुभाने की कोशिश, संवैधानिक सुधार का मुद्दा
पटना. बिहार की सियासत का आज ‘सुपर संडे’ का माहौल है क्योंकि तीन प्रमुख नेता-चिराग पासवान, तेजस्वी यादव और उपेंद्र कुशवाहा राज्य के अलग-अलग हिस्सों में राजनीतिक रैलियां करने जा रहे हैं. ये रैलियां आगामी बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए सियासी ताकत का प्रदर्शन करने और अलग-अलग जाति और वर्ग को अपने पाले में साधने की रणनीति का हिस्सा हैं. तेजस्वी यादव जहां वैश्य वोटों को लुभाने के लिए बेरोजगारी और वोटर लिस्ट जैसे मुद्दों को हवा दे रहे हैं तो चिराग का ‘बिहार फर्स्ट’ का नारा दलितों में जोश भर रहा है. वहीं, कुशवाहा कोइरी समाज को एकजुट करने के लिए परिसीमन सुधार का दांव खेल रहे हैं. इन रैलियों के माध्यम से बिहार की जनता की निगाहें अब इन नेताओं के अगले कदम पर टिकी हैं. आइये जानते हैं तीनों कार्यक्रमो की डिटेल जानते हैं.
दलितों का एकमात्र नेता बनने की चाहत!
केंद्रीय मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान नालंदा के राजगीर में ‘बहुजन भीम समागम’ को संबोधित करेंगे. इस रैली में तीन लाख से अधिक बहुजन और पार्टी कार्यकर्ताओं के शामिल होने की उम्मीद है. चिराग पासवान का ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ का नारा दलित समुदाय, खासकर पासवान जाति (5.31% आबादी) के बीच उनकी मजबूत पकड़ को बताता है. चिराग की बढ़ती सक्रियता और उनकी पार्टी की 2024 लोकसभा चुनाव में पांच सीटों पर जीत ने उन्हें एनडीए में एक माहिर और मजबूत खिलाड़ी बनाया है. हालांकि, उनकी विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा ने नीतीश कुमार और अन्य सहयोगियों में बेचैनी पैदा की है.
सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद
बिहार विधानसभा चुनाव पर क्या होगा असर?
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. तेजस्वी यादव महागठबंधन को मजबूत करने और वैश्य वोटों को साधने की कोशिश में हैं, जबकि चिराग और कुशवाहा एनडीए के भीतर अपनी स्थिति मजबूत करने के साथ-साथ दलित और कोइरी वोट बैंक को एकजुट कर रहे हैं. चिराग की महत्वाकांक्षा और उनकी ‘वोट कटुआ’ भूमिका की आशंका ने एनडीए में टेंशन बढ़ा दिया है, खासकर नीतीश कुमार के लिए. दूसरी ओर तेजस्वी विपक्ष के रूप में एनडीए की कमजोरियों को भुनाने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.जाहिर है ये रैलियां बिहार की जातिगत और सामाजिक गणित को साधने का प्रयास हैं जो चुनावी रणनीति में निर्णायक साबित हो सकती हैं.
वक्फ कानून और शिवाजी पर जुटान
इसके साथ ही बिहार में वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 और शिवाजी स्मारक विवाद को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है.आज पटना के गांधी मैदान में ‘वक्फ बचाओ, दस्तूर बचाओ’ रैली का आयोजन हो रहा है जिसमें हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल होंगे. रैली में वक्फ बिल को ‘काला कानून’ बताकर इसका विरोध किया जाएगा. दूसरी ओर, बेगूसराय में शिवाजी स्मारक को लेकर जनता का गुस्सा भड़क रहा है जहां स्थानीय लोग बीजेपी सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. प्रदर्शनकारी इसे सांस्कृतिक अस्मिता पर हमला बता रहे हैं. ये दोनों मुद्दे बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सियासी माहौल को गरमा रहे हैं.

पत्रकारिता क्षेत्र में 22 वर्षों से कार्यरत. प्रिंट, इलेट्रॉनिक एवं डिजिटल मीडिया में महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन. नेटवर्क 18, ईटीवी, मौर्य टीवी, फोकस टीवी, न्यूज वर्ल्ड इंडिया, हमार टीवी, ब्लूक्राफ्ट डिजिट…और पढ़ें
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