होम नॉलेज कैसे बनती है मिसाइल, कितनी है कीमत? पाकिस्तान बना रहा ICBM, अमेरिका तक होगी पहुंच

कैसे बनती है मिसाइल, कितनी है कीमत? पाकिस्तान बना रहा ICBM, अमेरिका तक होगी पहुंच

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दावा किया जा रहा है कि पाकिस्‍तान इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) तैयार कर रहा है, जिसकी पहुंच अमेरिका तक होगी.

लम्बे समय से मिसाइलें चर्चा में हैं. इजराइल-ईरान के युद्ध में मिसाइलों का जमकर इस्तेमाल किया गया. एक-दूसरे से दो हजार किमी से ज्यादा दूरी हवाई जंग लड़ी गई. इस बीच जापान ने मिसाइल का परीक्षण किया और अब पाकिस्तान की चर्चा हो रही है. अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया है कि पाकिस्तान इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (ICBM) तैयार कर रहा है. ICBM ऐसी मिसाइल होती है जो लम्बी दूरी तक दुश्मन को निशाना बनाती है और भारी विस्फोटक ले जाने की क्षमता रखती है.

दावा यह भी किया गया है कि परमाणु हथियार से लैस यह मिसाइल अमेरिका तक को निशाना बनाने में समर्थ होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि मिसाइल कैसे बनती है, इसमें क्या-क्या होता है? किस तकनीक से कंट्रोल होती है और कैसे तय होता है कि कितनी दूर जाएगी? एक मिसाइल बनने में कितना समय लगता है और कितना खर्च आता है?

हथियार ले जाने वाला रॉकेट

मिसाइल एक तरह का सेल्फ प्रोपेल्ड हथियार है. आसान भाषा में कहें तो मिसाइल एक तरह का रॉकेट होती है, जिसमें हथियार ले जाने की सुविधा होती है. इसके सबसे ऊपरी हिस्से को नोज कोन कहा जाता है. इसी में हथियार रखा जाता है. इसलिए इसको वारहेड सेक्शन भी कहते हैं. मिसाइलों में जरूरत के हिसाब से पेलोड, गाइडेंस सिस्टम और फ्यूजिंग मैकेनिज्म होता है.

अब मिसाइल अपने टारगेट पर निशाना कैसे साधेगी, यह बताने के लिए इसमें गाइडेंस सिस्टम लगाया जाता है. वास्तव में गाइडेंस सिस्टम इसके कंट्रोल सेक्शन का हिस्सा होता है, जिसमें गाइडेंस सिस्टम के अलावा नेविगेशन सिस्टम भी होता है, जो मिसाइल को सही दशा और दिशा देता है. इसके अलावा मिसाइल के टकराने पर विस्फोट होगा अथवा टारगेट के केवल नजदीक जाने पर, यह तय करने के लिए फ्यूजिंग मैकेनिज्म का इस्तेमाल किया जाता है.

मिसाइलों की दिशा तय करने के लिए थ्रस्ट वेक्टरिंग का इस्तेमाल किया जाता है. यह एक ऐसा सिस्टम होता है, जो मिसाइल के नॉजल को घुमा कर एडजस्ट करता है. इसी से मिसाइलें दाएं-बनाएं घूमने में सक्षम होती हैं और अपने सही ट्रैजेक्टरी यानी कि पाथ पर आगे बढ़ती हैं.

Brahmos Missile

ब्रह्मोस मिसाइल

फ्यूल और मोटर का इस्तेमाल

मिसाइलों को चलाने के लिए फ्यूल का इस्तेमाल किया जाता है. इसके लिए मिसाइलों में फ्यूल टैंक होता है, जिसमें प्रोपेलेंट और ऑक्सीडाइजर भरा जाता है. ये दोनों आपस में मिलकर किसी मिसाइल को टारगेट तक पहुंचने के लिए ऊर्जा प्रदान करते हैं. दरअसल, यह फ्यूल मिसाइल के नीचे वाले हिस्से में लगे रॉकेट के मोटर तक जाता है. रॉकेट की मोटर मिसाइल को थ्रस्ट यानी आगे बढ़ने की शक्ति देती है. यह शक्ति कितनी होगी, यह मिसाइल की ऊंचाई, रॉकेट के मोटर के फ्यूल से तय होता है. मिसाइल में दो तरह के मोटर का इस्तेमाल किया जाता है. एक होता है सॉलिड रॉकेट मोटर और दूसरा लिक्विड फ्यूल मोटर.

रॉकेट मोटर और वारहेड से तय होती है दूरी

मिसाइल का वर्गीकरण कई आधार पर किया जा सकता है पर सामान्य तौर पर तीन तरह की मिसाइलें होती हैं. बैलिस्टिक मिसाइल जो एक उच्च आर्क में उड़ती हैं और फिर अपने लक्ष्य पर निशाना साधती हैं. इसमें अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें और मध्यम और कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें शामिल हैं. बैलिस्टिक मिसाइलों को शुरू में इसके रॉकेट मोटर से शक्ति मिलती है पर बाद में ये स्वत: अपने पाथ पर आगे बढ़ जाती हैं. बैलिस्टिक मिसाइल में लगे रॉकेट मोटर इनको ऊपर बढ़ाने और हाई वेलोसिटी तक पहुंचाने के लिए शक्ति गेते हैं. फिर इंजन कटऑफ होता है और मिसाइल दूसरे चरण में प्रवेश कर जाती है. तब यह गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव से अंतरिक्ष से गुजरती है और आखिरी चरण में यह एक बार फिर से पृथ्वी के वायुमंडल में आती है और अपने लक्ष्य की ओर उतरती है.

बैलिस्टिक मिसाइलों का वर्गीकरण इसी आधार पर किया जाता है कि ये कितनी दूरी तय कर सकती हैं. ये कितनी दूरी तय करेंगी, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इनका रॉकेट मोटर कितना ताकतवर है, इनमें पेलोड या वारहेड का भार कितना होगा. मिसाइल को ज्यादा दूरी तक पहुंचाने के लिए एक के उपर एक रॉकेट मोटर स्थापित किया जाता है, जिससे मिसाइल को ज्यादा शक्ति मिलती है.

कम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें 1000 किमी से कम, मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें 1000 से 3000 और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलें 5500 किमी से भी अधिक दूरी तय करने में सक्षम होती हैं. वहीं, टैक्टिकल बैलिस्टिक मिसाइल की क्षमता 300 किमी से कम और इंटरमीडिएट रेंज बैलिस्टिक मिसाइल की क्षमता 3,500 से 5,500 किमी तक होती है. मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि ईरान ने इजराइल पर जो बैलिस्टिक मिसाइलें दागी हैं, उनमें हर एक को बनाने में करीब 10 लाख डॉलर तक का खर्च आया है.

Japan Tested First Missile

जापान ने टेस्ट की पहली मिसाइल

कितनी है एक मिसाइल की कीमत?

दूसरी ओर, क्रूज मिसाइल में जेट इंजन का इस्तेमाल किया जाता है और इनको जमीन, हवा या समुद्री प्लेटफॉर्म कहीं से भी लॉन्च किया जा सकता है. यह मिसाइल कम ऊंचाई पर धरती के वायुमंडल में ही उड़ान भरती है. चूंकि इस मिसाइल का इंजन लगातार काम करता है, इसलिए इनको नियंत्रित करना आसान होता है. यहां तक कि उड़ान भरने के बाद हवा में भी इनकी दिशा बदली जा सकती है. हालांकि, क्रूज मिसाइल बैलिस्टिक मिसाइल की तुलना में कम गति से उड़ान भरती है. कीमत की बात करें तो अलग-अलग तरह की क्रूज मिसाइल की कीमत अलग-अलग हो सकता है. हालांकि, अमेरिकी वायुसेना की नवीनतम क्रूज मिसाइल एजीएम-181ए की प्रत्येक इकाई की लागत 13 मिलियन डॉलर बताई गई है. यह मिसाइल परमाणु हथियार ले जाने में भी सक्षम है.

हाइपरसोनिक मिसाइल की रफ्तार सबसे ज्यादा

मिसाइलों की दुनिया में सबसे अग्रणी बनने की होड़ में हाइपरसोनिक मिसाइल है. यह खास मिसाइल आवाज की गति से भी पांच गुना अधिक तेज रफ्तार (मैक 5) से चलती है. इसकी गति इतनी अधिक होती है कि इसे ट्रैक कर मार गिराना लगभग असंभव है. दुश्मन के खिलाफ सबसे तेज कार्रवाई के लिए इसी मिसाइल का इस्तेमाल होता है.

Super Advance Hypersonic Missile Dhvani

सुपर एडवांस हाइपरसोनिक मिसाइल ‘ध्वनि’

दो तरह की होती हैं हाइपरसोनिक मिसाइलें

1- हाइपरसोनिक बूस्ट ग्लाइड व्हीकल (एचजीवी): यह करीब-करीब बैलिस्टिक मिसाइल की तरह होती है, जिसे रॉकेट से अंतरिक्ष में फायर किया जाता है, इसके बाद इसे टारगेट की ओर बढ़ने के लिए ऊपरी वायुमंडल के सहारे छोड़ दिया जाता है. हालांकि, बैलिस्टिक मिसाइल की तरह इसे पूरी तरह से दागने के बाद भूला नहीं जाता, बल्कि इसके नीचे कम ऊंचाई पर एक बूस्ट ग्लाइड व्हीकल उड़ान भरता है, जो इस हाइपरसोनिक मिसाइल की उड़ान के बीच में भी कई बार इसका टारगेट और पाथ बदल सकता है.

2- हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल: यह मिसाइल क्रूज मिसाइल की तर्ज पर काम करती है और इसको पूरी उड़ान के दौरान एडवांस्ड रॉकेट या फिर हाईस्पीड जेट इंजन से शक्ति मिलती रहती है. हम सीधे-सीधे कह सकते हैं कि यह क्रूज मिसाइल का ही तेज गति वाला संस्करण है.

हाइपरसोनिक मिसाइलें बनाने का खर्च सबसे ज्यादा आता है. अमेरिका की अत्याधुनिक डार्क ईगल हाइपरसोनिक मिसाइल की एक यूनिट की लागत तो 41 मिलियन डॉलर तक बताई जाती है. वहीं, अलग-अलग मिसाइलें बनाने में लगने वाला समय भी अलग-अलग है. कुछ मिसाइलें ऐसी हैं, जिन्हें कुछ हफ्तों में ही तैयार कर लिया जाता है. वाल स्ट्रीट जनरल की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की कुछ अत्याधुनिक मिसाइल को बनाने में दो साल तक का समय लग जाता है.

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