होम राजनीति राहुल गांधी का वो दांव जो तेजस्वी यादव को टेंशन दे रहा, रणनीति या कमजोर कड़ी?

राहुल गांधी का वो दांव जो तेजस्वी यादव को टेंशन दे रहा, रणनीति या कमजोर कड़ी?

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पटना. बिहार की सियासत में 2025 विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और इस बार कांग्रेस ने 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोककर सबको चौंका दिया है.सूत्रों के हवाले से खबर है कि पार्टी ने इन सीटों को तीन श्रेणियों में बांटा है जिनमें ‘ए’ में 50 मजबूत सीटें, ‘बी’ और ‘सी’ में 18-18 सीटें और चार अतिरिक्त सीटों पर विचार चल रहा है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या बिहार में कांग्रेस की इतनी हैसियत बची है कि वह इतनी सीटों पर दम दिखा सके और इसका महागठबंधन पर क्या असर होगा? दूसरा यह कि यह दावेदारी महज सियासी शोर है या कोई सोची-समझी रणनीति? बिहार की सियासत और महागठबंधन के भीतर कांग्रेस की कुलबुलाहट और इसकी उलझी हुई राजनीति को समझते हैं.

बता दें कि बिहार में कांग्रेस की स्थिति पिछले कुछ दशकों में लगातार कमजोर होती गई है. कभी बिहार की सियासत पर एकछत्र राज करने वाली पार्टी आज महागठबंधन में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की छोटी साझेदार बनकर रह गई है. वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन मात्र 19 सीटें जीत पाई. इसका स्ट्राइक रेट 27% रहा. जाहिर है कांग्रेस का यह प्रदर्शन महागठबंधन के लिए नुकसानदेह साबित हुआ क्योंकि आरजेडी ने 144 सीटों पर लड़कर 75 सीटें जीतीं और सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन सरकार नहीं बना पाई. महज 12 सीटों से सत्ता के लिए बहुमत की 122 सीटों से दूर रह गई. राजनीति के जानकारों ने कांग्रेस की कमजोर स्ट्राइक रेट को महागठबंधन की हार का प्रमुख कारण माना था.

 क्या कांग्रेस के लिए कोई माहौल बन पाया?

दरअसल, कांग्रेस की कमजोरी का एक कारण उसका सीमित सामाजिक आधार है. बिहार में आरजेडी का यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण मजबूत है. वहीं, कांग्रेस मुख्य रूप से ऊपरी जातियों और कुछ हद तक दलित वोटों पर निर्भर है. लेकिन अगड़ी जातियां अब बीजेपी की ओर झुक रही हैं और दलित वोटरों में चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं का अधिक प्रभाव है. इसके बावजूद कांग्रेस ने हाल के वर्षों में ‘पलायन रोको, रोजगार दो’ और ‘न्याय संवाद’ जैसे अभियानों के जरिए अपनी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश की है. राहुल गांधी और सचिन पायलट जैसे नेताओं की बिहार में रैलियां और यात्राएं हुई हैं, लेकिन जानकारों की दृष्टि में यह अभी नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस के लिए कोई माहौल बन पाया है.

90 सीटों की दावेदारी या दबाव की रणनीति?

कांग्रेस की 90 सीटों की दावेदारी को कई लोग रणनीतिक चाल मान रहे हैं. बिहार में कांग्रेस के नए प्रभारी कृष्णा अल्लावरू ने साफ कहा है कि पार्टी अब आरजेडी की ‘बी-टीम’ नहीं, बल्कि ‘ए-टीम’ बनकर लड़ेगी. यह दावेदारी गठबंधन में अपनी सियासी सौदेबाजी की स्थिति को मजबूत करने की कोशिश हो सकती है. वर्ष 2020 में 70 सीटें मिलने के बावजूद कमजोर प्रदर्शन के बाद आरजेडी ने कांग्रेस की सीटों की मांग पर सवाल उठाए थे. अब कांग्रेस ने 90 सीटों का लक्ष्य रखकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह कमजोर सहयोगी नहीं है. लेकिन, बड़ा सवाल यही है कि क्या कांग्रेस की इतनी दावेदारी उसकी वर्तमान ताकत के अनुरूप उचित है या नहीं.

सियासी जमीन तलाश कर रही कांग्रेस

बता दें कि कांग्रेस ने इन सीटों को तीन श्रेणियों में बांटा है और इसके अनुसार ‘ए’ श्रेणी में 50 ऐसी सीटें जहां वह मजबूत है. वहीं, ‘बी’ श्रेणी में 18 सीटें जहां वह पिछले चुनाव हारी थी, लेकिन जीत की संभावना है. जबकि, ‘सी’ श्रेणी में 18 सीटें जहां वह नई जमीन तलाश रही है. जाहिर है यह रणनीति दिखाती है कि कांग्रेस सिर्फ संख्या बढ़ाने के बजाय जीत सकने वाली सीटों पर फोकस कर रही है. दूसरी ओर पार्टी ने उम्मीदवारों और सीटों का सर्वे भी शुरू किया है जिससे कमजोर सीटों पर दावा न ठोके.

महागठबंधन में टकराव के आसार

राजनीति के जानकार कहते हैं कि कांग्रेस की इस महत्वाकांक्षी दावेदारी का महागठबंधन पर दोहरा असर हो सकता है. एक ओर यह गठबंधन में तनाव बढ़ा सकती है क्योंकि आरजेडी, जो 2020 में 144 सीटों पर लड़ी थी और वह अपनी सीटें कम करने को तैयार नहीं होगी. सीपीआई(एमएल) ने 45 सीटों और वीआईपी ने 60 सीटों की मांग की है, जिससे सीट बंटवारे की बातचीत जटिल हो गई है.दूसरी ओ आरजेडी तेजस्वी यादव को सीएम चेहरा बनाना चाहती है, लेकिन कांग्रेस ने अभी तक इसका समर्थन नहीं किया जो गठबंधन के भीतर के अविश्वास की अलग ही कहानी कहती है.

दे सकता है एनडीए को कड़ी टक्कर

दूसरी ओर अगर कांग्रेस अपनी संगठनात्मक कमजोरियों को दूर कर पाई और 90 सीटों में से 40-50% भी जीत गई तो यह महागठबंधन की ताकत बढ़ा सकता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ने 11 सीटें जीतीं जिसमें कांग्रेस की तीन सीटें शामिल थीं. यह प्रदर्शन दिखाता है कि अगर कांग्रेस मजबूत सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करे तो गठबंधन एनडीए को कड़ी टक्कर दे सकता है. लेकिन कांग्रेस की कमजोर स्ट्राइक रेट और आंतरिक गुटबाजी (जैसा कि कन्हैया कुमार के सीएम चेहरा बनने की अटकलों में दिखा) गठबंधन की एकजुटता को नुकसान पहुंचा सकती है.

क्या कांग्रेस की रणनीति सफल होगी?

कांग्रेस की रणनीति की सफलता कई बातों पर निर्भर है. पहला यह कि पार्टी को अपने संगठन को मजबूत करना होगा. नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के नेतृत्व में पार्टी गुटबाजी खत्म करने की कोशिश कर रही है, लेकिन बिहार में कांग्रेस का इतिहास गुटबाजी से भरा रहा है. दूसरा यह कि उसे अपने सामाजिक आधार को विस्तार देना होगा. तेजस्वी यादव का ‘MY-BAAP’ फॉर्मूला (मुस्लिम, यादव, बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, गरीब) गठबंधन के लिए बड़ा वोट आधार बनाने की रणनीति है, लेकिन कांग्रेस को सवर्ण जातियों और दलितों के साथ-साथ युवा और महिलाओं को लुभाना होगा.

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