पटना. बिहार की सियासत में 2025 विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और इस बार कांग्रेस ने 90 सीटों पर चुनाव लड़ने का दावा ठोककर सबको चौंका दिया है.सूत्रों के हवाले से खबर है कि पार्टी ने इन सीटों को तीन श्रेणियों में बांटा है जिनमें ‘ए’ में 50 मजबूत सीटें, ‘बी’ और ‘सी’ में 18-18 सीटें और चार अतिरिक्त सीटों पर विचार चल रहा है. लेकिन, सवाल यह है कि क्या बिहार में कांग्रेस की इतनी हैसियत बची है कि वह इतनी सीटों पर दम दिखा सके और इसका महागठबंधन पर क्या असर होगा? दूसरा यह कि यह दावेदारी महज सियासी शोर है या कोई सोची-समझी रणनीति? बिहार की सियासत और महागठबंधन के भीतर कांग्रेस की कुलबुलाहट और इसकी उलझी हुई राजनीति को समझते हैं.
क्या कांग्रेस के लिए कोई माहौल बन पाया?
दरअसल, कांग्रेस की कमजोरी का एक कारण उसका सीमित सामाजिक आधार है. बिहार में आरजेडी का यादव-मुस्लिम (MY) समीकरण मजबूत है. वहीं, कांग्रेस मुख्य रूप से ऊपरी जातियों और कुछ हद तक दलित वोटों पर निर्भर है. लेकिन अगड़ी जातियां अब बीजेपी की ओर झुक रही हैं और दलित वोटरों में चिराग पासवान और जीतन राम मांझी जैसे नेताओं का अधिक प्रभाव है. इसके बावजूद कांग्रेस ने हाल के वर्षों में ‘पलायन रोको, रोजगार दो’ और ‘न्याय संवाद’ जैसे अभियानों के जरिए अपनी सक्रियता बढ़ाने की कोशिश की है. राहुल गांधी और सचिन पायलट जैसे नेताओं की बिहार में रैलियां और यात्राएं हुई हैं, लेकिन जानकारों की दृष्टि में यह अभी नहीं कहा जा सकता कि कांग्रेस के लिए कोई माहौल बन पाया है.
90 सीटों की दावेदारी या दबाव की रणनीति?
सियासी जमीन तलाश कर रही कांग्रेस
बता दें कि कांग्रेस ने इन सीटों को तीन श्रेणियों में बांटा है और इसके अनुसार ‘ए’ श्रेणी में 50 ऐसी सीटें जहां वह मजबूत है. वहीं, ‘बी’ श्रेणी में 18 सीटें जहां वह पिछले चुनाव हारी थी, लेकिन जीत की संभावना है. जबकि, ‘सी’ श्रेणी में 18 सीटें जहां वह नई जमीन तलाश रही है. जाहिर है यह रणनीति दिखाती है कि कांग्रेस सिर्फ संख्या बढ़ाने के बजाय जीत सकने वाली सीटों पर फोकस कर रही है. दूसरी ओर पार्टी ने उम्मीदवारों और सीटों का सर्वे भी शुरू किया है जिससे कमजोर सीटों पर दावा न ठोके.
महागठबंधन में टकराव के आसार
दे सकता है एनडीए को कड़ी टक्कर
दूसरी ओर अगर कांग्रेस अपनी संगठनात्मक कमजोरियों को दूर कर पाई और 90 सीटों में से 40-50% भी जीत गई तो यह महागठबंधन की ताकत बढ़ा सकता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ने 11 सीटें जीतीं जिसमें कांग्रेस की तीन सीटें शामिल थीं. यह प्रदर्शन दिखाता है कि अगर कांग्रेस मजबूत सीटों पर बेहतर प्रदर्शन करे तो गठबंधन एनडीए को कड़ी टक्कर दे सकता है. लेकिन कांग्रेस की कमजोर स्ट्राइक रेट और आंतरिक गुटबाजी (जैसा कि कन्हैया कुमार के सीएम चेहरा बनने की अटकलों में दिखा) गठबंधन की एकजुटता को नुकसान पहुंचा सकती है.
क्या कांग्रेस की रणनीति सफल होगी?
कांग्रेस की रणनीति की सफलता कई बातों पर निर्भर है. पहला यह कि पार्टी को अपने संगठन को मजबूत करना होगा. नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम और प्रभारी कृष्णा अल्लावरू के नेतृत्व में पार्टी गुटबाजी खत्म करने की कोशिश कर रही है, लेकिन बिहार में कांग्रेस का इतिहास गुटबाजी से भरा रहा है. दूसरा यह कि उसे अपने सामाजिक आधार को विस्तार देना होगा. तेजस्वी यादव का ‘MY-BAAP’ फॉर्मूला (मुस्लिम, यादव, बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, गरीब) गठबंधन के लिए बड़ा वोट आधार बनाने की रणनीति है, लेकिन कांग्रेस को सवर्ण जातियों और दलितों के साथ-साथ युवा और महिलाओं को लुभाना होगा.