UP Politics: समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) ने उत्तर प्रदेश में तीन विधायकों को पार्टी से निष्कासित कर दिया है. सपा ने रायबरेली स्थित ऊंचाहार से विधायक मनोज पांडेय (Manoj Pandey), अमेठी के गौरीगंज से राकेश प्रताप सिंह (Rakesh Pratap Singh) और अयोध्या स्थित गोसाईंगज से विधायक अभय सिंह (Abhay Singh) को निष्कासित किया है.
इन विधायकों में से एक मनोज पांडेय के संदर्भ में सूत्रों का दावा है कि वह आने वाले वक्त में विधायकी से इस्तीफा दे सकते हैं. अगर ऐसा हुआ तो भारतीय जनता पार्टी की रायबरेली इकाई में एक नया शीतयुद्ध छिड़ सकता है.
जानकारों का मानना है कि अभी रायबरेली में बीजेपी में दो गुट हैं. एक गुट है विधायक अदिति सिंह का और दूसरा एमएलसी और योगी सरकार में मंत्री दिनेश सिंह का. ये दोनों गुट स्पष्ट तौर पर नजर भी आते हैं. वर्ष 2024 में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में दिनेश सिंह ने बीजेपी के टिकट पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में दिनेश को हार का सामना करना पड़ा था.
माना जाता है कि अदिति सिंह ने उपरोक्त चुनाव से दूरी बनाए रखी. दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा है. दोनों ही गुट एक दूसरे के धुर विरोधी हैं. वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव के दौरान जब भारतीय जनता पार्टी की एक बड़ी रैली हुई तब उसमें भी अदिति सिंह के जाने और नहीं जाने के बीच कयास लग रहे थे. हालांकि वह आखिरी में 10 मिनट के लिए पहुंचीं थीं. इस रैली में गृह मंत्री अमित शाह, दिनेश सिंह और मनोज पांडेय भी मौजूद थे.
उठ रहे हैं ये सवाल
अब सवाल यह उठ रहे हैं कि जब मनोज पांडेय, सक्रिय तौर पर भारतीय जनता पार्टी की रायबरेली इकाई में दखल देंगे तब क्या उन्हें अदिति और दिनेश का समर्थन मिलेगा या नहीं? सूत्रों की मानें तो मनोज पांडेय को रायबरेली इकाई में खुद को सक्रिय करने के लिए दोनों ही गुटों से समन्वय स्थापित करना होगा. अगर ऐसा नहीं होता है तो उनके लिए भविष्य की राह आसान नहीं होगी. हालांकि इसकी राह आसान दिखाई नहीं दे रही है.
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अदिति और मनोज के सियासी रिश्तों की बात करें तो अदिति सिंह के पिता स्व. अखिलेश सिंह पर मनोज पांडेय के भाई राकेश पांडेय की हत्या का आरोप था जिसमें वह जेल भी गए थे. ऐसे में यह कहना कि मनोज के बीजेपी में आने के बाद अदिति से उनके सियासी रिश्तों में सुधार आ जाएगा, यह अभी दूर की कौड़ी है. वहीं दिनेश और मनोज, निजी और सियासी तौर पर अलग-अलग हैं. मनोज अगर, दोनों गुटों से समन्वय स्थापित नहीं कर पाते हैं तो न सिर्फ उनके लिए बल्कि बीजेपी के लिए भी असहज स्थिति हो जाएगी.
मनोज के अदिति और दिनेश से सियासी समन्वय नहीं बने तो आशंका इस बात की भी जताई जा रही है कि रायबरेली में तीसरा गुट मनोज का भी बन जाएगा जो बीजेपी के लिए कहीं से भी बेहतर स्थिति नहीं होगी.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी हाईकमान, किस तरह से इस पूरी स्थिति को संभालता है और नेताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करता है.