पटना. इन दिनों बिहार की राजनीति में परिवारवाद का मुद्दा तेजी से उछल रहा है. बिहार विधानसभा चुनाव से पहले परिवारवाद के मुद्दे पर खूब चर्चा हो रही है. सवाल यह है कि क्या विधानसभा चुनाव में भी राजनीतिक दल परिवारवाद के रास्ते पर चलेंगे या इस बार परिवारवाद से दूर रहेंगे. आखिर परिवारवाद बिहार की राजनीति में इतना हावी क्यों है, यह सवाल राजनीतिक गलियारों के साथ-साथ आम जनता भी जानना चाहती है. लेकिन, इस सवाल का जवाब ढूंढ़ना आसान नहीं है क्योंकि शायद ही कोई ऐसा दल होगा जिसमें परिवारवाद न हो.
कौन-कौन हैं परिवारवाद के उदाहरण
RJD: लालू यादव, राबड़ी देवी, तेजस्वी यादव, मीसा भारती, तेज प्रताप यादव, रोहिणी आचार्य, जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह.
JDU: अशोक चौधरी की पुत्री शांभवी चौधरी, रामसेवक हजारी के पुत्र महेश्वर हजारी, बैद्यनाथ महतो के पुत्र सुनील कुमार, जयंत राज के पुत्र जनार्दन मांझी.
HAM: जीतन राम मांझी के पुत्र संतोष सुमन, देवेंद्र मांझी दामाद, ज्योति देवी समधन, दीपा मांझी पुत्रवधू.
पार्टियों के अपने-अपने तर्क
जाहिर है, तमाम राजनीतिक पार्टियों में ऐसे कई उदाहरण हैं जो परिवारवाद को लेकर सवाल खड़े करते हैं. चुनावी साल में दल परिवारवाद पर हमला तो बोलेंगे. लेकिन, इससे अलग राह लेंगे ऐसा नहीं लगता है. तभी तो सभी दलों का अपना-अपना तर्क भी है. JDU प्रवक्ता अंजुम आरा कहती हैं कि परिवारवाद को लेकर राजनीति हो रही हैं. लेकिन, नीतीश कुमार पर कोई आरोप नहीं लगा सकता. कांग्रेस प्रवक्ता असित नाथ तिवारी कहते हैं कि कांग्रेस नेता जनता के आशीर्वाद से राजनीति करते हैं. वहीं RJD प्रवक्ता एजाज़ अहमद कहते हैं कि लालू परिवार को जनता का आशीर्वाद मिला है, इसलिए परिवारवाद की बात नहीं आती.
परिवारवाद से बाहर क्यों नहीं निकल पाते हैं क्षेत्रीय दल?
संजय कुमार कहते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर BJP पर परिवारवाद का आरोप कम लगता है. लेकिन, बिहार में BJP में भी ऐसे उदाहरण मिल जाएंगे. परिवारवाद का आरोप नेताओं के जातीय वोट को भुनाने की कोशिश होती है. बहरहाल, सियासी तापमान गर्म है और परिवारवाद का मुद्दा गहरा रहा है. अब नजरें टिकी हुई हैं विधानसभा चुनाव पर कि राजनीतिक दल परिवारवाद को लेकर क्या रुख रखते हैं. लेकिन, इससे बाहर जा पाना मुश्किल लगता है.