पटना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे के दौरान सिवान की जनसभा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान के बीच हुई बातचीत ने सियासी गलियारों में नये सवाल को जन्म दे दिया है. सवाल यह कि क्या नीतीश कुमार चिराग पासवान की बढ़ती सियासी महत्वाकांक्षा से डर गए हैं? यह सवाल जमुई के सांसद अरुण भारती की उस जानकारी के साझा करने के बाद उठे हैं जो पीएम के मंच पर नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच बातचीत हुई थी. जमुई सांसद अरुण भारती के अनुसार, पीएम मोदी के मंच पर नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से पूछा, क्या आप वाकई बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं? अगर लड़ते हैं तो कहां से? इसके बाद सीएम नीतीश ने चिराग पासवान की युवा छवि और केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनके उज्ज्वल भविष्य का हवाला देते हुए सुझाव दिया और यह भी कहा कि उन्हें अभी विधानसभा चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं है. अब सवाल यह उठ रहा है कि नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से ऐसा क्यों कहा- क्या नीतीश कुमार वाकई में चिराग पासवान से डर गए हैं?
चिराग से नीतीश की गुफ्तगू के मायने समझिये
अब सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार वाकई में चिराग पासवान डर गए हैं जो चिराग पासवान को बिहार आने से रोकना चाहते हैं, या यह NDA के भीतर रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की कवायद है? राजनीति के जानकारों की नजरों से समझें तो इसके कई पहलू हैं. एक तो चिराग पासवान को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का 2020 वाला बुरा अनुभव है तो दूसरा यह कि आने वाले चुनाव में एनडीए की रणनीतिक कठिनाइयां. तीसरा यह कि चुनाव परिणाम के बाद क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व को चुनौती की भी संभावना एनडीए में कहीं निकलकर आ सकती है?
प्रेशर पॉलिटिक्स और किंगमेकर की महत्वाकांक्षा
सियासी गलियारों में चिराग पासवान को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान कहा जाता है.
बिहार चुनाव को लेकर चिराग पासवान की रणनीति
दरअसल, चिराग पासवान ने अपनी रणनीति को “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” के नारे के साथ जोड़ा है जिससे वह दलित और गैर-यादव पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं. उनकी आरा रैली में “नव संकल्प महासभा” और पटना में कार्यकारिणी बैठक जैसे आयोजनों ने उनकी सियासी सक्रियता दिखाती है कि वह अपने अभियान पर बढ़ चले हैं. दरअसल, चिराग की नजर उन सीटों पर भी है जहां 2020 में उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. ब्रह्मपुर, दिनारा और रूपौली जैसी कुल 9 सीटें ऐसी हैं जहां चिराग को अपनी पार्टी की जीत संभावित लगती है. स्पष्ट है कि यह रणनीति न केवल उनकी पार्टी को मजबूत करने की है, बल्कि नीतीश के प्रभाव को कम करने की भी कोशिश है.
NDA के अंदरखाने असमंजस और सीट बंटवारे का दबाव
एनडीए गठबंधन में इस मुद्दे पर अंदर ही अंदर टेंशन!
राजनीति के जानकारों की नजर में बिहार एनडीए में बड़ी चुनौती सीट बंटवारे की है. सूत्रों के मुताबिक, BJP और जदयू के बीच 100-100 सीटों पर सहमति बनी है, जबकि बाकी 43 सीटें LJP (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM), और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के बीच बंटेंगी. अब चिराग पासवान की 25-35 सीटों की मांग पूरी होगी कि नहीं इसको लेकर सवाल है. खासकर उन नौ सीटों पर जहां जदयू भी दावेदारी ठोक रही है उसका क्या होगा. साफ है कि एनडीए गठबंधन में इस मुद्दे पर अंदर ही अंदर टेंशन है.
एनडीए के आंतरिक असमंजस को भुनाने की कोशिश

20 जून 2025 को सिवान में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर सीएम नीतीश कुमार के साथ थे चिराग पासवान.
क्या नीतीश कुमार वाकई में चिराग पासवान से डरे हैं?
अब सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार वाकई में डरे हुए हैं? नीतीश और चिराग की बातचीत में नीतीश का चिराग को विधानसभा चुनाव न लड़ने का सुझाव उनकी रणनीति को कमजोर करने की कोशिश हो सकती है.दरअसल, नीतीश को 2020 का बुरा अनुभव याद है, जब चिराग ने जदयू को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था. चिराग की युवा अपील और “बिहार फर्स्ट” का नारा नीतीश की विकास-केंद्रित छवि को चुनौती दे सकता है. नीतीश का यह पूछना कि-आप कहां से लड़ेंगे? हालांकि, राजनीति के जानकार इस बातचीत का एक सिरा नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीति में संभावित एंट्री की चर्चा से भी जोड़ते हैं जिसको लेकर जदयू सतर्क है.
नीतीश का इमोशनल दांव और चिराग का जवाब
विपक्ष का फायदा, जनता की नजर और एनडीए का संतुलन
बिहार में महागठबंधन, खासकर RJD के नेता तेजस्वी यादव चिराग पासवान की इस सक्रियता को NDA में फूट के रूप में देख रहे हैं. तेजस्वी यादव ने चिराग के चुनाव लड़ने के ऐलान पर तंज कसते हुए कहा, सांसदी छोड़कर लड़ें, कोई दिक्कत नहीं. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर चिराग की मांगें पूरी नहीं हुईं तो वह NDA के लिए “वोट कटुआ” की भूमिका निभा सकते हैं, ठीक वैसा ही जैसा 2020 में हुआ था. बहरहाल, जनता की नजर इस शह-मात के खेल पर टिकी है और चिराग की युवा छवि और नीतीश के अनुभवी नेतृत्व की टक्कर 2025 के चुनाव को रोमांचक बनाएगी या फिर नीतीश की सियासी चतुराई और BJP का समर्थन इस महत्वाकांक्षा के उथल-पुथल को कंट्रोल कर लेगा.