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Bihar politics क्या चिराग पासवान से डर गए हैं नीतीश कुमार? इमोशनल दांव और सियासी जवाब के अंदरखाने की कहानी

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पटना. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार दौरे के दौरान सिवान की जनसभा में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के नेता चिराग पासवान के बीच हुई बातचीत ने सियासी गलियारों में नये सवाल को जन्म दे दिया है. सवाल यह कि क्या नीतीश कुमार चिराग पासवान की बढ़ती सियासी महत्वाकांक्षा से डर गए हैं? यह सवाल जमुई के सांसद अरुण भारती की उस जानकारी के साझा करने के बाद उठे हैं जो पीएम के मंच पर नीतीश कुमार और चिराग पासवान के बीच बातचीत हुई थी. जमुई सांसद अरुण भारती के अनुसार, पीएम मोदी के मंच पर नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से पूछा, क्या आप वाकई बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं? अगर लड़ते हैं तो कहां से? इसके बाद सीएम नीतीश ने चिराग पासवान की युवा छवि और केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनके उज्ज्वल भविष्य का हवाला देते हुए सुझाव दिया और यह भी कहा कि उन्हें अभी विधानसभा चुनाव लड़ने की जरूरत नहीं है. अब सवाल यह उठ रहा है कि नीतीश कुमार ने चिराग पासवान से ऐसा क्यों कहा- क्या नीतीश कुमार वाकई में चिराग पासवान से डर गए हैं?

सांसद अरुण भारती ने क्या बताया?- अरुण भारती ने बताया कि सिवान में मंच पर चिराग पासवान से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पूछा कि क्या आप वाकई बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं? अगर लड़ते हैं तो कहां से चुनाव लड़ेंगे? अरुण भारती ने आगे बताया कि मुख्यमंत्री ने चिराग पासवान से कहा कि आप युवा हैं और केंद्रीय मंत्री भी हैं. आपका भविष्य उज्जवल है और आपको अभी विधानसभा चुनाव लड़ने की क्या जरूरत है? नीतीश कुमार ने यह भी कहा कि उन्होंने राम विलास पासवान के साथ काम किया है. सीएम नीतीश ने राजगीर में आगामी 29 जून को होने वाले बहुजन भीम समागम की जानकारी ली और कहा कि बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की बड़ी भूमिका है. इस पर चिराग पासवान ने कहा कि बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी उनकी पार्टी की तरफ से चल रही है. अगर पार्टी का आदेश हुआ तो वो आपका आशीर्वाद लेने जरूर आएंगे.

चिराग से नीतीश की गुफ्तगू के मायने समझिये

अब सवाल उठता है कि क्या नीतीश कुमार वाकई में चिराग पासवान डर गए हैं जो चिराग पासवान को बिहार आने से रोकना चाहते हैं, या यह NDA के भीतर रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की कवायद है? राजनीति के जानकारों की नजरों से समझें तो इसके कई पहलू हैं. एक तो चिराग पासवान को लेकर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू का 2020 वाला बुरा अनुभव है तो दूसरा यह कि आने वाले चुनाव में एनडीए की रणनीतिक कठिनाइयां. तीसरा यह कि चुनाव परिणाम के बाद क्या नीतीश कुमार के नेतृत्व को चुनौती की भी संभावना एनडीए में कहीं निकलकर आ सकती है?

प्रेशर पॉलिटिक्स और किंगमेकर की महत्वाकांक्षा

दरअसल, चिराग पासवान की राजनीतिक रणनीति 2020 के विधानसभा चुनाव से ही चर्चा में रही है जब उनकी पार्टी ने NDA से अलग होकर 137 सीटों पर चुनाव लड़ा और जनता दल (यूनाइटेड) को 34 सीटों पर नुकसान पहुंचाया था. इसके चलते कभी बिहार की नंबर वन पार्टी जदयू तीसरे नंबर की पार्टी बन गई. इसके बाद वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में LJP (रामविलास) ने पांच सीटों पर जीत प्राप्त कर अपनी सियासी ताकत दिखाई. वहीं, अब चिराग पासवान 2025 के चुनाव में भी अपनी रणनीति से सबको चौंका रहे हैं. उन्होंने अपने एक बयान में जब यह कह दिया कि वह सभी 243 सीटों पर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं तो एनडीए में खलबली मच गई. हालांकि, बाद में उन्होंने इसे संभालते हुए एनडीए की लड़ाई की बात कही. राजनीति के जानकार कहते हैं कि उनकी यह घोषणा बिहार में 40 विधानसभा सीटों की मांग की प्रेशर पॉलिटिक्स का हिस्सा माना जा रहा है. जाहिर है इसका एक मकसद NDA में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाना और भविष्य में किंगमेकर की भूमिका निभाना है.

सियासी गलियारों में चिराग पासवान को पीएम नरेंद्र मोदी का हनुमान कहा जाता है.

बिहार चुनाव को लेकर चिराग पासवान की रणनीति

दरअसल, चिराग पासवान ने अपनी रणनीति को “बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट” के नारे के साथ जोड़ा है जिससे वह दलित और गैर-यादव पिछड़े वर्गों में अपनी पैठ बढ़ा रहे हैं. उनकी आरा रैली में “नव संकल्प महासभा” और पटना में कार्यकारिणी बैठक जैसे आयोजनों ने उनकी सियासी सक्रियता दिखाती है कि वह अपने अभियान पर बढ़ चले हैं. दरअसल, चिराग की नजर उन सीटों पर भी है जहां 2020 में उनकी पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी. ब्रह्मपुर, दिनारा और रूपौली जैसी कुल 9 सीटें ऐसी हैं जहां चिराग को अपनी पार्टी की जीत संभावित लगती है. स्पष्ट है कि यह रणनीति न केवल उनकी पार्टी को मजबूत करने की है, बल्कि नीतीश के प्रभाव को कम करने की भी कोशिश है.

NDA के अंदरखाने असमंजस और सीट बंटवारे का दबाव

वर्ष 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में NDA के सामने कई चुनौतियां हैं. पहली यह कि नीतीश कुमार के नेतृत्व को लेकर असमंजस अब भी है. पीएम मोदी ने सिवान में सीएम नीतीश की तारीफ की, लेकिन अमित शाह का बयान कि “सीएम का फैसला समय पर होगा” NDA के भीतर नेतृत्व की अनिश्चितता को दर्शाता है. हालांकि, चिराग पासवान ने सार्वजनिक रूप से नीतीश कुमार के नेतृत्व का हर समय समर्थन किया है, लेकिन उनके समर्थकों के पोस्टर (चिराग के स्वागत को तैयार है बिहार) और 243 सीटों पर लड़ने का ऐलान नीतीश के लिए खतरे की घंटी है.

एनडीए गठबंधन में इस मुद्दे पर अंदर ही अंदर टेंशन!

राजनीति के जानकारों की नजर में बिहार एनडीए में बड़ी चुनौती सीट बंटवारे की है. सूत्रों के मुताबिक, BJP और जदयू के बीच 100-100 सीटों पर सहमति बनी है, जबकि बाकी 43 सीटें LJP (रामविलास), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM), और राष्ट्रीय लोक मोर्चा (RLM) के बीच बंटेंगी. अब चिराग पासवान की 25-35 सीटों की मांग पूरी होगी कि नहीं इसको लेकर सवाल है. खासकर उन नौ सीटों पर जहां जदयू भी दावेदारी ठोक रही है उसका क्या होगा. साफ है कि एनडीए गठबंधन में इस मुद्दे पर अंदर ही अंदर टेंशन है.

एनडीए के आंतरिक असमंजस को भुनाने की कोशिश

एक बड़ी चुनौती NDA की एकजुटता है. चिराग की बढ़ती सक्रियता ने उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जैसे सहयोगियों में भी बेचैनी पैदा की है. जीतन राम मांझी ने चिराग पासवान पर तंज कसते हुए कहा था कि, जो ताकतवर है वह समय आने पर दिखाएगा. साफ है कि यह उनकी नाराजगी को दर्शाता है. वहीं, दूसरी ओर जदयू नेताओं का मानना है कि चिराग पासवान की यह रणनीति 2020 की तरह उनके वोट काट सकती है. इसके अलावा विपक्ष, खासकर तेजस्वी यादव, NDA के इस आंतरिक असमंजस को भुनाने की कोशिश में है.

20 जून 2025 को सिवान में पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मंच पर सीएम नीतीश कुमार के साथ थे चिराग पासवान.

क्या नीतीश कुमार वाकई में चिराग पासवान से डरे हैं?

अब सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार वाकई में डरे हुए हैं? नीतीश और चिराग की बातचीत में नीतीश का चिराग को विधानसभा चुनाव न लड़ने का सुझाव उनकी रणनीति को कमजोर करने की कोशिश हो सकती है.दरअसल, नीतीश को 2020 का बुरा अनुभव याद है, जब चिराग ने जदयू को तीसरे स्थान पर धकेल दिया था. चिराग की युवा अपील और “बिहार फर्स्ट” का नारा नीतीश की विकास-केंद्रित छवि को चुनौती दे सकता है. नीतीश का यह पूछना कि-आप कहां से लड़ेंगे? हालांकि, राजनीति के जानकार इस बातचीत का एक सिरा नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीति में संभावित एंट्री की चर्चा से भी जोड़ते हैं जिसको लेकर जदयू सतर्क है.

नीतीश का इमोशनल दांव और चिराग का जवाब

बता दें कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार की राजनीतिक एंट्री की चर्चा जोरों पर है. ऐसे में चिराग पासवान की सियासी सक्रियता निशांत के पॉलिटिकल फ्यूचर के लिए चुनौती हो सकती है, क्योंकि निशांत की अनुभवहीनता और चिराग की स्थापित छवि में अंतर साफ है. लेकिन, इन परिस्थितियों के बावजूद राजनीति के जानकार कहते हैं कि यह कहना कि नीतीश “डर गए हैं” पूरी तरह सही नहीं होगा. नीतीश का सुझाव उनकी अनुभवी सियासी चाल का हिस्सा हो सकता है जिसका उद्देश्य चिराग को केंद्रीय राजनीति तक सीमित रखना और गठबंधन में उनकी बढ़ती महत्वाकांक्षा पर लगाम लगाना है. नीतीश कुमार ने चिराग पासवान के पिता राम विलास पासवान के साथ अपने पुराने रिश्ते का हवाला देकर भावनात्मक दबाव बनाने की कोशिश की. लेकिन, चिराग पासवान का जवाब कि “पार्टी का आदेश हुआ तो आपका आशीर्वाद लेंगे” यह भी बताता है कि वह अपनी रणनीति पर अडिग हैं.

विपक्ष का फायदा, जनता की नजर और एनडीए का संतुलन

बिहार में महागठबंधन, खासकर RJD के नेता तेजस्वी यादव चिराग पासवान की इस सक्रियता को NDA में फूट के रूप में देख रहे हैं. तेजस्वी यादव ने चिराग के चुनाव लड़ने के ऐलान पर तंज कसते हुए कहा, सांसदी छोड़कर लड़ें, कोई दिक्कत नहीं. ऐसे में राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर चिराग की मांगें पूरी नहीं हुईं तो वह NDA के लिए “वोट कटुआ” की भूमिका निभा सकते हैं, ठीक वैसा ही जैसा 2020 में हुआ था. बहरहाल, जनता की नजर इस शह-मात के खेल पर टिकी है और चिराग की युवा छवि और नीतीश के अनुभवी नेतृत्व की टक्कर 2025 के चुनाव को रोमांचक बनाएगी या फिर नीतीश की सियासी चतुराई और BJP का समर्थन इस महत्वाकांक्षा के उथल-पुथल को कंट्रोल कर लेगा.

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