होम नॉलेज अमेरिका इजराइल के लिए जंग में क्यों कूदा, नेतन्याहू की इतनी मदद क्यों? 5 बड़ी वजह

अमेरिका इजराइल के लिए जंग में क्यों कूदा, नेतन्याहू की इतनी मदद क्यों? 5 बड़ी वजह

द्वारा

अमेरिका और इजराइल की दोस्ती जगजाहिर है और ईरान पर अमेरिका के हमले ने इस मुहर भी लगा दी है.

इजराइल-ईरान की जंग में अब अमेरिका भी कूद गया है. अमेरिका ने ईरान पर हवाई हमला किया है. हिन्द महासागर में स्थित अमेरिका और ब्रिटेन के संयुक्त डिएगो गार्सिया बेस से उड़े बी-2 स्पिरिट बॉम्बर विमानों ने तीन ईरानी परमाणु ठिकानों फोर्डो, नतांज और इस्फाहान पर हमला किया है. फोर्डो पर सबसे ज्यादा बमबारी की गई, जिसे जमीन से 90 मीटर नीचे बनाया गया है. आइए जान लेते हैं कि इजराइल के लिए अमेरिका इस जंग में क्यों कूदा और अमेरिका इजराइल की इतनी मदद क्यों करता है?

अमेरिका इस जंग में कूदने से बचने का दिखावा करता रहा और बातचीत के जरिए इसे टालने की कोशिश करने का दावा करता रहा है. हालांकि, अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने अंतत: कहा कि अब सभी तरह की डिप्लोमेसी बेअसर हो चुकी है. चूंकि बातचीत से कोई हल नहीं निकला, तब हमला किया गया. यह और बात है कि अमेरिका और ट्रंप शुरू से ही ईरान को धमकियां देते आ रहे थे.

अमेरिका इजराइल की क्यों कर रहा मदद, 5 बड़ी वजह

अमेरिका और इजराइल की दोस्ती जगजाहिर है. डेमोक्रेटिक सरकार का कार्यकाल हो या फिर रिपब्लिकन का, इजराइल के कदमों का विरोध करने के बावजूद अमेरिका उसकी मदद करता ही आया है. इसका सबसे बड़ा कारण तो यही है कि इजराइल की स्थापना के साथ ही अमेरिका उसका समर्थक रहा है.

1-रणनीतिक फायदा

यह साल 1948 की बात है. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन ने इजराइल के गठन के बाद सबसे पहले इसे मान्यता दी थी. इसके पीछे ट्रूमैन के पूर्व बिजनेस पार्टनर एडवर्ड जैकबसन ने बड़ी भूमिका निभाई थी. हालांकि, इस समर्थन की बड़ी वजह अमेरिका को मिलने वाला रणनीतिक फायदा था. वास्तव में यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का समय था और अमेरिका-सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध का शुरुआती चरण था. ऐसे में अपने तेल भंडार और रणनीतिक समुद्री मार्गों के कारण मिडिल ईस्ट काफी महत्वपूर्ण क्षेत्र बन चुका था. इसीलिए अमेरिका ने मौके का फायदा उठाया और नए-नवेले इजराइल को शक्तिशाली बना कर पूरे इलाके में अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिश शुरू कर दी, जो आज तक जारी है.

America Iran

2- रूस के दोस्तों से दुश्मनी

साल 1967 में इजराइल ने मिस्र, जॉर्डन और सीरिया के साथ युद्ध शुरू कर दिया तो अपनी रणनीति के तहत ही अमेरिका ने खुलकर उसका साथ दिया. इस युद्ध में इजराइल की जीत हुई और फिलिस्तीन, सीरिया और मिस्र के कई इलाकों पर इजराइल ने कब्जा कर लिया था. साल 1973 में एक बार फिर इजराइल ने मिस्र और सीरिया की सेनाओं को मात दी तो उसका कारण भी अमेरिका ही था.

हालांकि, इस युद्ध में सोवियत संघ की ओर से मिस्र और सीरिया को मदद मिल रही थी. ऐसे में जाहिर है कि अमेरिका को इजराइल की ओर खड़ा ही होना था. बाद में अमेरिका ने इजराइल को क्षेत्र में मजबूत करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल मिस्र व सीरिया में फूट पैदा डालने के लिए भी किया. इजराइल और मिस्र में शांति समझौता करवा दिया और सीरिया को अलग-थलग छोड़ दिया.

Iran Israel And America

3- आर्थिक मदद देकर हथियार बेचने और रखने की नीति

अमेरिका आज से नहीं, साल 1950 से ही इजराइल की आर्थिक मदद भी करता रहा है. दूसरे विश्व युद्ध के बाद तो इजराइल सबसे ज्यादा अमेरिकी विदेशी सहायता पाने वाला देश बन गया था. इसमें अमेरिकी आर्थिक सहायता से ज्यादा हिस्सेदारी सैन्य सहायता की रही, जिसके जरिए अमेरिका पूरे क्षेत्र पर दादागीरी करता रहा और इजराइल में अपने हथियार का भंडारण भी करता रहा.

साल 2016 में तो तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय में इजराइल-अमेरिका ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. इसके तहत इजराइल को आयरन डोम एंटी मिसाइल सिस्टम समेत सैन्य सहायता की फंडिंग का फैसला हुआ. इसमें कहा गया कि अगल 10 वर्षों में इजराइल को अमेरिका 38 बिलियन डॉलर की मदद देगा. यह मदद आज भी जारी है. जरूरत पड़ने पर बीच में अमेरिका अलग से इजराइल की सैन्य और आर्थिक मदद भी करता है.

4- अमेरिका में इजराइल का समर्थन

अमेरिका में इजराइल के समर्थन करने वाली अच्छी-खासी आबादी है. वहां का जनमत काफी लंबे समय से इजराइल के पक्ष में है. वहीं, बड़ी आबादी फिलिस्तीनियों के खिलाफ दिखती है. अमेरिका में कई ऐसे संगठन भी हैं जो इजराइल के समर्थक हैं और उसे अमेरिका के समर्थन की वकालत भी करते हैं. इनमें सबसे बड़ा और राजनीतिक रूप से सबसे राजनीतिक संगठन है अमेरिकी-इजरायल पब्लिक अफेयर्स कमेटी. इस संगठन के सदस्य न केवल अमेरिका में अमेरिकी यहूदियों पर अपना प्रभाव रखते हैं, बल्कि ईसाई इंजील चर्चों में जमीनी स्तर पर आयोजन और धन वसूली भी करते हैं.

5- राजनीतिज्ञों को आर्थिक मदद

इजराइल का समर्थन करने वाले समूह अमेरिकी राजनीतिज्ञों की आर्थिक मदद भी करते हैं. ये समूह अमेरिका में संघीय राजनीतिक प्रत्याशियों को लाखों डॉलर का दान देते रहे हैं. साल 2020 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान की ही बात करें तो तब इजराइल का समर्थन करने वाले समूहों ने अमेरिकी राजनीतिज्ञों को कुल 30.95 मिलियन डॉलर का दान दिया था. इस राशि में से 63 प्रतिशत डेमोक्रेटिक उम्मीदवारों को दी गई तो 36 प्रतिशत रिपब्लिकन प्रत्याशियों के खाते में गई थी.

Ali Khamenei And Trump

अब निशाने पर ईरान के सुप्रीम लीडर

ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामनेई को अमेरिका और इजराइल निशाना बनाना चाहते हैं. वह एक ऐसे बंकर में छिपे हैं, जिसे उड़ाना हर किसी के बस की बात नहीं है. अमेरिका यह जानता है कि अगर खामनेई के बंकर को उड़ाने की क्षमता किसी के पास है तो उसी के पास. ऐसे में इजराइल अकेले भले ही ईरान के कितने ही कमांडरों को निशाना बना ले पर अमेरिकी हमले के बिना वह खामनेई का बाल भी बांका नहीं कर सकता है.

परमाणु बम का बहाना

अमेरिका के इस शक को इजराइल पुख्ता करता रहा है कि ईरान परमाणु बम बना रहा है. इसके लिए इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के परमाणु ठिकानों से हजारों पेज के दस्तावेज, सीडी और डीवीडी चुराई थीं. इसके बाद साल 2018 में इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने दावा किया था कि ईरान परमाणु बम बना रहा है. यहां तक ईरानी परमाणु संयंत्रों में वायरस तक छोड़े थे. वैसे भी ईरान के परमाणु संयंत्रों में रूस बड़ा साझीदार है. ऐसे में जाहिर है कि ईरान और रूस की दोस्ती अमेरिकी और उसके दोस्त इजराइल को फूटी आंख नहीं सुहा रही.

सीलिए जमीन के काफी नीचे बने फोर्डो जैसे परमाणु संयंत्र को तबाह करना अमेरिका की प्राथमिकता है. अमेरिका का मानना है कि अगर अभी नहीं रोका गया, तो बहुत देर हो जाएगी. भले ही ईरान कहता आ रहा है कि वह परमाणु बम नहीं बना रहा. अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहा है पर उसका परमाणु कार्यक्रम हमेशा से अमेरिका और इजराइल को बेचैन करता रहा है.

मुस्लिम देशों की एकजुटता का खतरा

दरअसल, अपनी ताकत के बल पर अमेरिका लंबे समय से मिडिल ईस्ट में दादागीरी करता आया है. ऐसे में अगर ईरान परमाणु शक्ति संपन्न देश बन जाता है तो ऐसी संभावना है कि मिडिल ईस्ट के कई मुस्लिम देश अमेरिका का साथ छोड़कर ईरान के साथ खड़े हो सकते हैं. ऐसे में अमेरिका की सारी दादागीरी धरी की धरी रह जाएगी. इसी डर के कारण अमेरिका दावा करता आया है कि किसी भी कीमत पर ईरान को परमाणु बम नहीं बनाने देगा. वह कतई नहीं चाहता कि इस क्षेत्र में कोई और महाशक्ति बने, खासकर मुस्लिम देशों में से.

यह भी पढ़ें: ईरान और मुगलों के बीच कितनी जंग हुईं, कौन जीता-कौन हारा?

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

एक टिप्पणी छोड़ें

संस्कृति, राजनीति और गाँवो की

सच्ची आवाज़

© कॉपीराइट 2025 – सभी अधिकार सुरक्षित। डिजाइन और मगध संदेश द्वारा विकसित किया गया