होम राजनीति Bihar Politics: ‘दोधारी तलवार’ पर चल रहे ‘तीखे’ तेजस्वी! बिहार की सियासी मजबूरी, रणनीति या हताशा?

Bihar Politics: ‘दोधारी तलवार’ पर चल रहे ‘तीखे’ तेजस्वी! बिहार की सियासी मजबूरी, रणनीति या हताशा?

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पटना. बिहार की राजनीति में भाषाई तल्खी कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के महीनों में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बयानों ने न केवल सत्तारूढ़ एनडीए, बल्कि आम जनता को भी हैरत में डाल दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ तेजस्वी यादव के अपशब्दों और तीखी टिप्पणियों ने सियासी माहौल को गरमा दिया है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने तेजस्वी को ‘संस्कारहीन’ करार देते हुए उनके बयानों को देश और जनता का अपमान बताया है. यह सियासी घमासान 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले कई सवाल खड़े करता है. तेजस्वी की ऐसी भाषा के पीछे मजबूरी क्या है? क्या यह रणनीति है या हताशा? इसका बिहार की राजनीति और जनता की सोच पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?

तेजस्वी यादव ने हाल के महीनों में पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार पर तीखे हमले बोले हैं, जिनमें कई बार उनकी भाषा आपत्तिजनक और विवादास्पद रही है. 20 जून 2025 को पीएम मोदी के सिवान दौरे के बाद तेजस्वी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पीएम को ‘पॉकेटमार’ कहा और साथ ही यह आरोप लगाया कि उनकी रैलियों पर बिहार के खजाने से 100 करोड़ रुपये खर्च होते हैं, लेकिन बिहार को कोई ठोस लाभ नहीं मिलता. उन्होंने कहा, “हमें पॉकेटमार प्रधानमंत्री और अचेत मुख्यमंत्री नहीं चाहिए.” तेजस्वी ने यह भी तंज कसा कि पीएम बिहार में केवल लालू परिवार को गाली देने और जुमलेबाजी करने आते हैं, न कि बेरोजगारी, पलायन या विकास जैसे मुद्दों पर बात करने.

तेजस्वी यादव के अपशब्दों पर गर्म बिहार की सियासत

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ भी तेजस्वी की भाषा बेहद आक्रामक रही है. उन्होंने सीएम नीतीश को “अचेत अवस्था” में बताया और कहा कि वह अब बिहार चलाने लायक नहीं हैं. तेजस्वी ने नीतीश पर “अंधे, बहरे और गूंगे” होने का आरोप लगाया, साथ ही यह दावा किया कि उनकी सरकार अपराधियों को संरक्षण दे रही है और भ्रष्टाचार चरम पर है. इसके अतिरिक्त, नीतीश की ‘महिला संवाद यात्रा’ को ‘राजनीतिक पर्यटन’ करार देते हुए तेजस्वी ने कहा कि इस तरह की यात्राओं पर 2.25 अरब रुपये खर्च हो चुके हैं, लेकिन बिहार की प्रति व्यक्ति आय अब भी देश में सबसे कम है. उन्होंने नीतीश सरकार में गठित आयोगों में नेताओं के रिश्तेदारों की नियुक्ति को लेकर “जीजा आयोग, जमाई आयोग, मेहरारू आयोग” जैसे तंज भरे शब्दों का इस्तेमाल किया.

इस नेता ने तेजस्वी यादव को बता दिया ‘संस्कारहीन’

तेजस्वी यादव के इन बयानों पर बीजेपी और जदयू ने कड़ा जवाब दिया है. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने 23 जून 2025 को मुजफ्फरपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी को “संस्कारहीन” बताया. उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री किसी पार्टी का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि पूरे देश के नेता हैं. उनके खिलाफ अपशब्द बोलना देश और जनता का अपमान है. तेजस्वी की भाषा उनकी कुसंस्कारों की विरासत दर्शाती है.” राय ने यह भी कहा कि तेजस्वी की हताशा उनकी पार्टी की सत्ता से दूरी और बिहार की जनता द्वारा बार-बार खारिज किए जाने का परिणाम है. बीजेपी प्रवक्ता प्रभाकर मिश्रा ने भी तेजस्वी को “चरवाहा विद्यालय के कुलाधिपति” लालू यादव का बेटा बताते हुए उनकी भाषा को “लंपट” करार दिया.

पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार पर आक्रामक और आपत्तिजनक बयान दे रहे तेजस्वी यादव.

तेजस्वी यादव की मजबूरी, रणनीति या हताशा?

राजनीति के जानकार तेजस्वी यादव की इस आक्रामक और अपशब्दों से री भाषा के पीछे कई कारण मानते हैं. इनमें एक प्रमुख वजह राजनीतिक प्रासंगिकता बनाए रखने की कोशिश है. वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में राजद का प्रदर्शन अपेक्षाकृत कमजोर रहा और नीतीश कुमार की जदयू ने एनडीए के लिए किंगमेकर की भूमिका निभाई. तेजस्वी के लिए यह जरूरी है कि वह विपक्ष के नेता के तौर पर अपनी प्रासंगिकता बनाए रखें. तीखी बयानबाजी और पीएम-सीएम पर व्यक्तिगत हमले उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों को सक्रिय रखने की रणनीति हो सकती है.

सीएम नीतीश कुमार की छवि को कमजोर करना

नीतीश कुमार की बार-बार गठबंधन बदलने की छवि को तेजस्वी लगातार निशाना बनाते हैं. उन्होंने सीएम नीतीश कुमार को “धोखेबाज” और “अविश्वसनीय” कहा, यह दावा करते हुए कि बिहार की जनता अब उन पर भरोसा नहीं करती. यह रणनीति 2025 के विधानसभा चुनाव में नीतीश की विश्वसनीयता को कमजोर करने और राजद नेता तेजस्वी यादव को एक विकल्प के तौर पर प्रस्तुत करना भी वजह है.

जनता का ध्यान मुद्दों पर खींचने की कवायद, मगर…

वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि तेजस्वी की भाषा अमर्यादित तो है ही साथ ही वह अपनी विश्वसनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह खुद खड़ा कर रहे हैं. तेजस्वी यादव ने जिस तरह से बेरोजगारी, पलायन, भ्रष्टाचार और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों को उठाकर बिहार की जनता के बीच अपनी छवि एक युवा, आक्रामक और मुद्दों पर आधारित नेता के रूप में बनाने की कोशिश की है, वह काबिले तारीफ है, लेकिन उनकी भाषा का स्तर कई बार “अशोभनीय” माना गया जिससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठे हैं.

तेज प्रताप यादव के पारिवारिक और प्रेम प्रसंग विवाद से घिरे तेजस्वी यादव के आक्रमक तेवर.

तेजस्वी यादव पर पारिवारिक और व्यक्तिगत दबाव

अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, तेजस्वी यादव पर लालू परिवार की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने का दबाव है. उनके पिता लालू प्रसाद यादव और मां राबड़ी देवी की तुलना में उनकी छवि कमजोर मानी जाती है. इसके अलावा, परिवार के भीतर तेज प्रताप यादव के साथ विवाद और पार्टी से निष्कासन जैसे मुद्दों ने उनकी स्थिति को और जटिल किया है. ऐसे में आक्रामक होकर अपनी स्थिति को पार्टी और परिवार में मजबूत करने की कवायद भी हो सकती है.

तेजस्वी के तीखे बयानों का बिहार की राजनीति पर प्रभाव

तेजस्वी की इस आक्रामक भाषा का बिहार की राजनीति पर दोहरा प्रभाव पड़ सकता है. एक ओर यह राजद के कोर वोटरों-खासकर यादव और मुस्लिम समुदायों को एकजुट करने में मददगार हो सकता है. तेजस्वी यादव ने सांप्रदायिकता और आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दों को उठाकर सामाजिक ध्रुवीकरण की कोशिश की है. दूसरी ओर उनकी आपत्तिजनक भाषा ने राजद की छवि को नुकसान पहुंचाया है. बीजेपी और जदयू ने इसे “संस्कारहीनता” और “लंपट भाषा” करार देकर तेजस्वी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं. यह 2025 के चुनाव में राजद को नुकसान पहुंचा सकता है खासकर उन मतदाताओं के बीच जो नीतीश कुमार की विकासवादी और सुशासन वाली-केंद्रित छवि को पसंद करते हैं.

क्या लालू यादव की सियासी विरासत के साथ भाषाई विरासत संभालने की ओर बढ़ रहे तेजस्वी यादव?

लालू यादव की छवि से जोड़े जा रहे तेजस्वी यादव

बिहार की जनता की राय इस मामले में बंटी हुई है. जहानाबाद के एक निवासी युगल किशोर सैनिक जैसे कुछ लोग तेजस्वी को एक युवा, ऊर्जावान नेता के रूप में देखते हैं जो बदलाव ला सकता है. लेकिन, कई अन्य लोग नीतीश और मोदी के विकास कार्यों को प्राथमिकता देते हैं. एक्स पर कुछ पोस्ट्स में तेजस्वी के बयानों को “बौखलाहट” और “हताशा” बताया गया जो उनकी सजायाफ्ता पिता लालू की छवि से जोड़ा जाता है. जनता का एक वर्ग मानता है कि नीतीश कुमार ने बिहार को जंगलराज से बाहर निकाला और तेजस्वी की भाषा उनकी हताशा को दर्शाती है.

बिहार की जनता क्या स्वीकार करेगी यह बेहद दिलचस्प

वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार शर्मा कहते हैं कि तेजस्वी यादव की अपशब्दों से भरी भाषा उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकती है जिसका उद्देश्य विपक्ष को एकजुट करना और नीतीश कुमार की छवि को कमजोर करना है. वहीं, पीएम मोदी के विकास कार्यों को कमतर कर अपनी लीड लेने की कवायद भी हो, लेकिन उन्हें यह समझना होगा कि सोशल मीडिया के इस दौर में जनता बहुत जागरूक हो गई है और यह रणनीति उलटी भी पड़ सकती है क्योंकि यह उनकी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा रही है. ऐसा इसलिए भी कि बिहार की जनता विकास, रोजगार और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों को प्राथमिकता देती है और तेजस्वी को इन पर ठोस विकल्प पेश करने होंगे. 2025 का चुनाव न केवल नीतीश और तेजस्वी की विश्वसनीयता की परीक्षा होगी, बल्कि यह भी तय करेगा कि बिहार की जनता आक्रामक बयानबाजी को स्वीकार करती है या विकास के वादों को.

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