भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के निदेशक मंडल ने निवेशकों के हित को ध्यान में रखते हुए कई अहम फैसले लिए हैं। बोर्ड ने डी-लिस्टिंग से लेकर स्टार्टअप्स के आईपीओ तक कई बड़े रिफॉर्म्स को मंजूरी दी है। इसके साथ ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए नियमों में बदलाव किए गए हैं।
डी-लिस्टिंग के लिए बोर्ड ने एक अलग स्वैच्छिक स्ट्रक्चर पेश किया है, जिसमें सरकार के पास 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी होनी चाहिए। इसके साथ ही विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए नियमों में बदलाव किए गए हैं और उन्हें आसानी से भारत सरकार के बॉन्ड में निवेश करने की अनुमति दी गई है। इसके साथ ही आईजीबी-एफपीआई के लिए सभी फिजिकल बदलावों की सूचना देने के लिए एकसमान 30-दिवसीय अवधि तय की गई है।
सेबी ने एक साल पहले आवंटित ईएसओपी को बनाए रखने की मंजूरी दी है और निदेशकों और प्रमुख प्रबंध कर्मचारियों सहित चुनिंदा शेयरधारकों के लिए आईपीओ दस्तावेज दाखिल करने से पहले डीमैट रूप में शेयर रखना भी अनिवार्य कर दिया है। साथ ही बोर्ड ने पात्र संस्थागत नियोजन (क्यूआईपी) अलॉटमेंट संबंधी दस्तावेज की सामग्री को युक्तिसंगत बनाने की अनुमति भी दी है।