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ऋषिकेश: योग की राजधानी कैसे बनी? जानें 5 वजह

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ऋषिकेश की प्राचीन आध्यात्मिक विरासत है, इसका नाम वेदों, पुराणों और रामायण-महाभारत जैसी ग्रंथों में भी आता है. हिमालय की गोद और गंगा के तीरे बसी आध्यात्मिक नगरी ऋषिकेश की चर्चा यूं तो पूरे विश्व में होती है लेकिन बात जब ध्यान-योग की आती है तो इस छोटे से शहर को योग की वैश्विक राजधानी कहने से भी लोग नहीं चूकते. यह सम्मान इस नगरी को एक दिन में नहीं मिला है, अनेक ऋषियों की तपस्या है तो यहां का पूरा वातावरण भी इसमें मददगार है. इस नगरी को योग की राजधानी यानी Yoga Capital of the World के रूप में पहचानने की वजहों के बारे में जानें।

ऋषिकेश की प्राचीन आध्यात्मिक विरासत है, इसका नाम वेदों, पुराणों और रामायण-महाभारत जैसी ग्रंथों में भी आता है. माना जाता है कि यहां ऋषियों ने ध्यान और तपस्या की। यही विरासत आज भी यहां के वातावरण में महसूस होती है। धार्मिक ग्रंथों में मिलता है कि प्राचीन काल में एक ऋषि थे रैभ्य। उन्होंने इसी भूमि पर घोर तप किया। उनकी तपस्या से भगवान श्री हरि विष्णु इतने प्रभावित हुए कि वे एक ब्राह्मण के रूप में ऋषि के सामने आए। उनसे वरदान मांगने को कहा। ऋषि ने कहा कि ही प्रभु मैं चाहता हूं कि यह पवित्र भूमि आपके नाम से जानी जाए। भगवान ने तथास्तु कहकर वरदान को पूरा किया। कालांतर में इसे हृषिकेश के नाम से जाना गया। इस शब्द का अर्थ है इंद्रियों के सवामों अर्थात भगवान श्री विष्णु। समय बीतने के साथ हृषिकेश को ऋषिकेश के रूप में पहचान मिली। ऋषिकेश को ऋषियों के ध्यान और तपस्या की स्थली कहते हैं। भरत और लक्ष्मण भी यहां आ चुके हैं।

एक और धार्मिक कहानी प्रचलित है, जो भगवान राम के भाई भरत से सीधे जुड़ती है। कहा जाता है कि भरत मंदिर की स्थापना त्रेता युग में खुद भरत जी ने ही की थी। इस मंदिर में भगवान विष्णु सालिग्राम रूप में विराजमान हैं, जिन्हें आदि गुरु शंकराचार्य ने पुनर्स्थापित किया था। और आज भी यह मंदिर इस शहर के महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों में से एक है। आज के लक्ष्मण झूला के बारे में कहा जाता है कि इसकी मौजूदा संरचना भले ही इंजीनियरों ने बनाई है लेकिन इसी स्थान पर लक्ष्मण जी ने गंगा जी को पार करने को जूट से पुल बनाया था। इस तरह यह कहने में कोई संकोच किसी को नहीं होना चाहिए कि इस नगरी का नाता युगों से है। भगवान से है। ऋषियों-मुनियों से है।

विदेशी भी ऋषिकेश पहुंचकर योग को अपने जीवन का हिस्सा बनाते हैं। प्रकृति की गोद में बसी शांति योग और ध्यान के लिए जो प्राइमरी जरूरी तत्व चाहिए, उसमें वातावरण का बहुत बड़ा योगदान है। और इस शहर में वह सब कुछ एक ही साथ मिलता है, जो योग-ध्यान के साधकों को चाहिए। हिमालय की गोद, माँ गंगा का किनारा, शांति, सुकून, सब कुछ यहां एक ही पैकेज में मिल जाता है। यहां की हवा, हरे-भरे पहाड़ और कल-कल बहती गंगा की धारा योग और ध्यान के लिए एकदम उपयुक्त वातावरण बनाते हैं। जैसे-जैसे ऋषिकेश की पहचान योग-ध्यान नगरी के रूप में दुनिया में बढ़ने लगी, यहां संतों ने अनेक आश्रमों की स्थापना की। आज यहां कोई दर्जन भर आश्रम ऐसे हैं, जिनसे पूरी दुनिया का रिश्ता बना हुआ है। परमार्थ निकेतन, स्वर्ग आश्रम, शिवानंद आश्रम जैसे स्थान तो भक्तों-साधकों से भरे हुए हैं।

यूं तो इस धरा को प्रतिष्ठा दिलाने में यहां के आश्रमों का बड़ा योगदान है, जिनकी स्थापना ऋषियों ने ही की है, लेकिन इसे विश्व स्तर पर अचानक ख्याति तब मिली जब मशहूर ब्रिटिश बैंड ‘बीटल्स’ ने महर्षि महेश योगी के आश्रम में आकर ध्यान साधना की। यह 1960 के दशक का वाकया है। पश्चिमी देशों में इस बैंड की बहुत जबरदस्त साख थी। युवाओं से लेकर बड़ों के बीच यह लोकप्रिय था। दुनिया ने देखा कि नाचने-गाने वाले बैंड ने इस धरती पर ऐसा क्या पाया कि वे इसके भक्त हो गए। यह वही समय था जब महर्षि महेश योगी ने पूरी दुनिया का भ्रमण करना शुरू किया था। वे अपने खास ध्यान के जरिए लोगों में पैठ बना रहे थे, जिसे उनके अनुयायी टीम के नाम से जानते हैं। देखते ही देखते पूरी दुनिया से लोग योग सीखने को ऋषिकेश आने लगे। वैश्विक मानचित्र पर इस बैंड का योग और ऋषिकेश को आगे बढ़ाने में बड़ा योगदान माना जाता है।

ऋषिकेश अपनी गुफाओं के लिए काफी मशहूर है। यहां स्थापित गुफाएं जैसे वशिष्ठ गुफा, अरुंधती गुफा और झिलमिल गुफा दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। महर्षि महेश योगी के आश्रम बीटल्स आश्रम की गुफाएं भी लोगों में काफी लोकप्रिय हैं। यहां दूरदराज से पर्यटक सुकून की खोज में पहुंचते हैं। वशिष्ठ गुफा का संबंध महर्षि वशिष्ठ से बताया जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीराम के गुरु महर्षि वशिष्ठ ने यहीं पर तपस्या की थी। साल 1930 में स्वामी पुरुषोत्तमानंद ने इस गुफा की देखरेख का फैसला लिया था। तब से इसका प्रबंधन स्वामी पुरुषोत्तमानंद सोसाइटी करती है। वशिष्ठ गुफा के पास ही उनकी पत्नी अरुंधति की गुफा भी है। गंगा के तट पर स्थित

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