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बिहार चुनाव 2025: चिराग पासवान की सक्रियता और एनडीए में सीट शेयरिंग

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पटना. बिहार की सियासी गलियारों में इन दिनों हलचल तेज है. 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के भीतर सीट शेयरिंग को लेकर शह-मात का खेल शुरू हो गया है और इस खेल में सबसे सक्रिय नाम चिराग पासवान का है. पिछले पांच कार्यक्रमों में चिराग की बढ़ती सक्रियता ने न सिर्फ उनकी महत्वाकांक्षाओं को उजागर किया है, बल्कि साथी सहयोगियों उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी के लिए भी चुनौती खड़ी कर दी है. क्या चिराग इस बार एनडीए में अपनी स्थिति मजबूत कर पाएंगे या यह महज एक सियासी दांव है? आइए इस सियासी शतरंज की बारीकियों को समझते हैं.

चिराग पासवान ने बिहार में पिछले कुछ समय में अपनी सक्रियता बढ़ाई है. हाल के दिनों में कई जनसभाएं और रणनीतिक बैठकें की हैं.उनके कार्यक्रमों पर गौर करें तो बते 8 जून को चिराग पासवान ने आरा रमना मैदान में नव संकल्प महासभा को संबोधित किया. यह रैली उनकी सियासी महत्वाकांक्षा को दर्शनाने वाली और शाहाबाद क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश थी. इसके पहले पटना में प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक में चिराग ने बिहार विधानसभा चुनाव लड़ने की मांग का प्रस्ताव पारित कराया जो उनकी रणनीति का हिस्सा था.

वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति पर काम

इसके पहले वैशाली में जन आशीर्वाद सभा में चिराग ने बिहार के विकास और पलायन जैसे मुद्दों पर बात की और साथ ही अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने का प्रयास किया. वहीं, दलित सेना की बैठक में चिराग पासवान ने दलित समुदाय को साधने के लिए एक बैठक आयोजित की जिसमें उन्होंने अपने वोट बैंक को मजबूत करने की रणनीति पर काम किया. वहीं, विभिन्न जिलों में चिराग पासवान ने कार्यकर्ता सम्मेलन का आयोजन किया जहां उन्होंने ‘बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट’ का नारा बुलंद किया और संगठन को एकजुट करने का प्रयास किया. जाहिर है ये कार्यक्रम उनकी सियासी जमीन तैयार करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं.

एनडीए में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार

चिराग पासवान ने पिछले पांच कार्यक्रमों में उनकी सक्रियता को साफ दर्शाया है. हाल में आरा की नव संकल्प सभा से लेकर विभिन्न जिलों में कार्यकर्ता सम्मेलनों और अन्य आयोजनों में चिराग पासवान ने ‘बिहारी फर्स्ट, बिहार फर्स्ट’ का नारा बुलंद किया और यह संदेश देने की कोशिश की कि उनकी पार्टी एनडीए में अहम भूमिका निभाने के लिए तैयार है. उनका दावा है कि उनकी पार्टी को कम से कम 40 सीटें मिलनी चाहिए. उनका यह दावा उनके लोकसभा चुनावों में 100% स्ट्राइक रेट की उपलब्धि को लेकर है. यह मांग न सिर्फ उनके सहयोगियों के लिए खतरे की घंटी है, बल्कि एनडीए की एकता पर भी सवाल खड़े कर रही है.

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