होम देश मैतेई नेता की गिरफ्तारी के बाद मणिपुर में हिंसा

मैतेई नेता की गिरफ्तारी के बाद मणिपुर में हिंसा

द्वारा

मणिपुर में हालिया हिंसा के बाद स्थिति और बिगड़ गई है। शिरुई लिली महोत्सव के दौरान कुकी बहुल क्षेत्र में हमले हुए। मैतेई समुदाय के नेता की गिरफ्तारी ने नई हिंसा को जन्म दिया है। पिछले दो वर्षों में तीन…डॉयचे वेले दिल्लीMon, 9 June 2025 06:08 PMपूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में ताजा हिंसा के बाद सवाल उठने लगा है कि आखिर बार-बार यहां हिंसा की चिंगारी क्यों भड़क उठती है? लेकिन इस सवाल का जवाब फिलहाल न तो प्रशासन के पास है और न ही राजनीतिक पंडितों के.हाल में शिरुई लिली महोत्सव के दौरान मैतेई समुदाय के लोगों को बसों में भर कर कुकी बहुल उखरुल जिले में ले जाया गया.लेकिन यह पहल भी कामयाब नहीं हो सकी.कुकी उग्रवादियों ने इन बसों पर भी हमले किए.सबसे ताजा मामले में हाल में बीजेपी ने नए सिरे से सरकार के गठन की कवायद शुरू की थी और 44 विधायकों के समर्थन वाला एक पत्र भी राज्यपाल को सौंपा गया था.इससे उम्मीद जगी थी कि नई सरकार के सत्ता संभालने के बाद शायद हालात में सुधार और राज्य के लोग सामान्य दिनचर्या में लौट सकें.किलो के भाव किताबें बेच कर सद्भाव बढ़ाते मणिपुर के युवालेकिन अब मैतेई संगठन आरामबाई टेंगगोल के कट्टरपंथी नेता ए.कानन सिंह की सीबीआई के हाथों गिरफ्तारी ने राजधानी इंफाल समेत मैतेई बहुल इलाकों में नए सिरे से हिंसा भड़का दी है.रविवार को पूरे दिन उत्तेजित भीड़ ने कई इलाको में हिंसा, आगजनी और पथराव किया.मैतेई संगठनों ने सोमवार से राज्य में 10 दिनों के बंद की अपील की है.दूसरी ओर, प्रशासन ने पांच जिलों में इंटरनेट बंद कर दिया है और कई इलाकों में निषेधाज्ञा लागू कर दी है.आखिर राज्य में राख के नीचे से हिंसा की चिंगारी बार-बार क्यों भड़क उठती है? इस सवाल का सीधा जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. राज्य के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर डीडब्ल्यू से कहते हैं, “मैतेई नेता की गिरफ्तारी ही ताजा हिंसा की वजह है.दोनों समुदायों के बीच की कड़वाहट तो जरा भी कम नहीं हुई है.अब इस नेता की गिरफ्तारी मैतेई समुदाय को अपनी तौहीन लग रही है.दोनों समुदाय मौजूदा परिस्थिति के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं.कुछ मामलों में मैतेई समुदाय ने कुछ नरम रवैया भले अपनाया है, कुकी समुदाय तो किसी भी परिस्थिति में झुकने के लिए तैयार नहीं है”बीते दो सालों में 300 से भी ज्यादा जानें गईंमणिपुर बीते दो साल से ज्यादा समय से जातीय हिंसा की चपेट में है.इसमें अब तक तीन सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 50 हजार से ज्यादा विस्थापित हैं.संपत्ति को हुए नुकसान का आंकड़ा भी करोड़ों में है.बीते खासकर तीन-चार महीनों से राज्य में शांति बहाली की कवायद के तहत पहले विधानसभा को निलंबित कर राष्ट्रपति शासन लागू किया गया और फिर केंद्र की पहल पर दिल्ली में एक-दूसरे के खून के प्यासे बने मैतेई और कुकी समुदाय के नेताओं के बीच बैठक भी आयोजित की गई.इसमें मैतेई नेताओं ने तो नरम रवैया अपनाया.लेकिन कुकी समुदाय के लोग आपसी सलाह-मशविरा के बाद अपना फैसला बताने की बात कह वहां से लौटे थे.वो अब तक किसी फैसले पर नहीं पहुंचे हैं.मणिपुर में बर्फ पिघलने के संकेत?इस दौरान जब-जब शांति प्रक्रिया के शुरू होने की उम्मीद नजर आई, हिंसा की चिंगारी अचानक भड़क उठी थी. ऐसे कई मौके गिनाए जा सकते हैं जब लगा कि अब शायद शांति बहाली का रास्ता साफ हो जाएगा.पहली बार राष्ट्रपति शासन के बाद पुलिस और सुरक्षाबलों से लूटे गए हथियारों के सरेंडर ने इसकी उम्मीद जताई.उसके बाद दिल्ली में हुई बैठक और फिर दो साल से बंद पड़े नेशनल हाइवे पर अबाध आवाजाही शुरू करने के फैसले से भी दोनों समुदायों के बीच की खाई कम होने के आसार नजर आए थे.आखिर समस्या जड़ से खत्म क्यों नहीं हो रही राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शांति बहाल करने की सरकारी कवायद कई बार झूठी उम्मीदें तो जगाती है.एक विश्लेषक के.कुंजम सिंह डीडब्ल्यू से कहते हैं, “अब स्थिति यह हो गई है कि खासकर कुकी समुदाय अलग स्वायत्त क्षेत्र की अपनी मांग से कम पर किसी समझौते के लिए तैयार नहीं है.वह बार-बार कहता रहा है कि अब मैतेई लोगों के साथ रहना संभव नहीं है.लेकिन सरकार के लिए इस मांग को मानना या इस पर चर्चा करना बेहद मुश्किल है.वैसे स्थिति में पूर्वोत्तर के कई राज्यों में ऐसी मांग उठने लगेगी.तब मणिपुर की आग को पूरे पूर्वोत्तर में फैलने में ज्यादा समय नहीं लगेगा.वह स्थिति काफी विस्फोटक होगी”क्या पटरी पर लौटेंगे मणिपुर के जमीनी हालात?मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता टी.सरिता देवी (मैतेई) डीडब्ल्यू से कहती हैं, “यह समस्या जल्दी खत्म नहीं होगी. केंद्र सरकार ने लंबे समय तक इसकी अनदेखी की.इससे समस्या और जटिल हो गई है.शुरुआती दौर में इस पर ध्यान देने की स्थिति में शायद हालात इतने नहीं बिगड़ते.कुकी समुदाय के लोग अब शांति बहाली के लिए तैयार नहीं हैं”उधर, एक कुकी महिला कार्यकर्ता एल.चानू (बदल

आपको यह भी पसंद आ सकता हैं

एक टिप्पणी छोड़ें

संस्कृति, राजनीति और गाँवो की

सच्ची आवाज़

© कॉपीराइट 2025 – सभी अधिकार सुरक्षित। डिजाइन और मगध संदेश द्वारा विकसित किया गया