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मुस्लिम देश के नाम पर मुसलमानों को लुभाते मुहम्मद अली जिन्ना ने प्रस्तावित पाकिस्तान का कभी भी खाका पेश नहीं किया. जिन्ना ने नफ़रत की बुनियाद पर पाकिस्तान हासिल कर लिया लेकिन उनकी इस कामयाबी में सबसे ज्यादा मुसलमानों का वो हिस्सा ठगा गया जिसका वतन भारत ही रहना था. जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लिए समूचे भारत में मुस्लिमों का जबरदस्त समर्थन जुटाया. लेकिन पाकिस्तान की मांग करते समय उन्होंने प्रस्तावित मुल्क का भौगोलिक खाका कभी पेश नहीं किया. जिन्ना की थ्योरी कि हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते, को अंग्रेजों ने भी यह कहते हुए हवा दी कि हिंदू और मुसलमान ऐसे अलग लोग हैं जो लोकतंत्र के मूल नियमों पर भी असहमत हैं. अलग मुस्लिम देश के नाम पर मुसलमानों को लुभाते और उन्माद में भरते मुहम्मद अली जिन्ना ने प्रस्तावित पाकिस्तान का कभी भी खाका पेश नहीं किया. मुसलमान तो पूरे देश में बसे थे. जब देश का बंटवारा होगा तो इस बंटवारे की क्या तस्वीर होगी और समूचे देश के मुसलमान उसका कैसे अंग बनेंगे, ऐसे मुश्किल सवाल से जिन्ना ने हमेशा चालाकी से किनारा किया. जिन्ना को पता था कि मुसलमानों के नाम पर अलग देश हासिल करने के बाद भी भारत की तमाम मुस्लिम आबादी को यहीं रहना है. उनका क्या भविष्य होगा ? सच तो यह है कि अब यह जिन्ना की चिंता का विषय नहीं रह गया था. एक प्रमुख मुस्लिम लीगी मुहम्मद रजा खान ने अपने संस्मरणों में जुलाई 1947 के आखिरी हफ्ते में सेंट्रल असेंबली के मुस्लिम सदस्यों और लीग के नेताओं से भारत में जिन्ना से हुई अंतिम मुलाकात का ब्योरा दिया है. रजा के मुताबिक एक तरीके से यह जिन्ना की विदाई पार्टी भी थी. कई लोगों ने उनसे भारत में रह रहे मुसलमानों के भविष्य पर चिंता जाहिर करते हुए उनकी राय मांगी. जिन्ना एक बार फिर दो टूक थे, “आपको नए निज़ाम और बदले हुए हालात में खुद ही रास्ता तय करना होगा. लेकिन आपको भारत के प्रति वफादार रहना होगा , क्योंकि आप दो घोड़ों की एक साथ सवारी नहीं कर सकते.”
क्या मुसलमानों का ठगा गया था विश्वास? जिन्ना ने जबरदस्ती किया किनारा
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