होम राजनीति Bihar domicile policy student union protest announced RJD Tejaswi Yadav supports bihar politics बिहार में डोमिसाइल नीति लागू करने की मांग पर तेजस्वी यादव का बयान.

Bihar domicile policy student union protest announced RJD Tejaswi Yadav supports bihar politics बिहार में डोमिसाइल नीति लागू करने की मांग पर तेजस्वी यादव का बयान.

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पटना. बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए अब बिहार में डोमिसाइल का मुद्दा जोर पकड़ने लगा है. बिहार स्टूडेंट यूनियन ने आगामी 5 जून को इसको लेकर महाआंदोलन करने की घोषणा की है. इसमें हजारों छात्रों के शामिल होने का दावा किया गया है.संगठन ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर इस आंदोलन की सूचना भी दे दी है. इसको लेकर छात्र नेता दिलीप ने कहा है कि यह आंदोलन राज्य में डोमिसाइल नीति लागू करने और पारदर्शिता को लेकर किया जाएगा. इनकी मांग है कि अगली सभी बहाली में डोमिसाइल नीति लागू हो. वहीं, इस मुद्दे को लेकर राजद ने एक ट्वीट कर मामले को और गरमा दिया है. तेजस्वी यादव की तस्वीर के साथ राजद के सोशल मीडिया अकाउंट पर कहा गया है कि बिहार में 100% डोमिसाइल नीति लागू करेंगे.

राजद के पोस्ट में लिखा गया है कि, तेजस्वी यादव जी ने जो कह दिया समझो वह पूरा हो गया. तेजस्वी यादव जी की हर बात हर संकल्प की यही विश्वसनीयता उन्हें सभी राजनेताओं से अलग बनाती है. युवाओं के हृदय में स्थान दिलाती है. बिहार में 100% डोमिसाइल नीति लागू करेंगे. बता दें कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव लगातार बिहार में 100% डोमिसाइल लागू करने की बात कहते रहे हैं. बीते मार्च में तेजस्वी यादव ने इस मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो बिहार में 100% डोमिसाइल लागू की जाएगी.

युवाओं के बीच तेजस्वी ने की थी घोषणा

पटना के मिलर हाई स्कूल मैदान में बीते 5 मार्च को आयोजित युवा चौपाल को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने कहा था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आएगी तो 100% मूल निवास नीति (डोमिसाइल पॉलिसी) लागू की जाएगी. पूर्व उपमुख्यमंत्री ने वहां मौजूद युवाओं से वादा किया था कि वह राज्य के युवाओं के हितों की रक्षा के लिए 100% मूल निवास नीति लागू करेंगे. तब उन्होंने पड़ोसी राज्य झारखंड का हवाला देते हुए कहा था कि 100% मूल निवास नीति लागू करने के प्रयास तकनीकी कारणों असफल हो गया लेकिन, बिहार के लिये उन्होंने कई न्यायविदों से इस मामले पर चर्चा की है और इसका समाधान खोज लिया है.

क्या है डोमिसाइल नीति?

भारत के कई राज्यों में डोमिसाइल नीति लागू है. इसके अंतर्गत राज्य सरकार की कुछ नौकरियों में संबंधित राज्यों के के मूल निवासियों को प्राथमिकता दी जाती है. डोमिसाइल नीति किसी राज्य या देश में निवास करने वाले लोगों को कुछ विशेष अधिकार या सुविधाएं प्रदान करती है, जो केवल उसी राज्य या देश के निवासियों के लिए उपलब्ध होती है. इसका उद्देश्य स्थानीय निवासियों के हितों की रक्षा करना और उन्हें बाहरी लोगों से अलग पहचान करना होता है. कई बार यह भारत के संघीय ढांचे पर आघात करता हुआ बताया जाता है और इससे जुड़े विवाद कई बार कोर्ट में पहंच जाते हैं.

डोमिसाइल नीति का उद्देश्य

दरअसल, डोमिसाइल नीति को लागू करने का उद्देश्य नौकरियों, शिक्षा, और अन्य सुविधाओं में स्थानीय निवासियों (संबंधित राज्य) को प्राथमिकता देती हैं. इसका अर्थ है कि जो लोग उस राज्य के निवासी हैं, उन्हें इन सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए अधिक अवसर मिलते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ राज्यों में डोमिसाइल नीति के तहत, स्थानीय निवासियों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया जाता है, या उन्हें शिक्षा में विशेष सुविधाएं प्रदान की जाती हैं. बता दें कि वर्ष 2020 में मध्यप्रदेश सरकार ने ऐलान किया था कि राज्य में दी जा रही सरकारी नौकरियों में स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी. लेकिन अलग अलग राज्यो में स्थानीय लोगों को दी जाने वाली सुविधाएं अलग-अलग होती हैं.

उदाहरण के साथ समझिये-महाराष्ट्र का मामला

उदाहरण के लिए इन मामलों पर गौर कर सकते हैं. महाराष्ट्र में मराठी बोलने वाले स्थानीय निवासी ही सरकारी नौकरी के लिए योग्य माने जाते हैं. यहां स्थानीय निवासी कम से कम 15 साल से रहना वाला व्यक्ति होना चाहिए.हालांकि, इसमें कर्नाटक के बेलगाम के रहने वाले लोग अपवाद माने गए हैं, क्योंकि वहां ज्यादातर लोग मराठी बोलते हैं. वहीं कर्नाटक में सरकारी नौकरियों में जाति आधारित आरक्षण है लेकिन यहां 95 से ज्यादा प्रतिशत सरकारी कर्मचारी स्थानीय हैं.

उत्तराखंड-गुजरात और असम का मामला

इसी तरह उत्तराखंड में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के सभी नौकरियां स्थानीय लोग ही कर सकते हैं. इसके लिए राज्य सरकार से जारी मूल निवासी प्रमाणपत्र लगता है जो कम से कम 15 साल से राज्य में रह रहे लोगों को मिल पाता है. वहीं, गुजरात सरकार की 85 कर्मचारियों और कारीगरों के पदों साथ प्रबंधन और निरीक्षण वाले पदों में 60 प्रतिशत तक स्थानीय निवासियों के लिए हैं. असम में वैसे तो राज्य के लोगों के लिए कोई अलग से आरक्षण नहीं है, लेकिन वहां स्थानीय लोगों की पहचान के लिए असम समझौते के तहत अलग कानून पर काम चल रहा है.

पूर्वोत्तर के कुछ राज्य और बंगाल-यूपी का मामला

जबकि, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश दोनों राज्यों की सरकारों ने स्थानीय जनजातियों के लिए 80 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है. कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद भी स्थानीय लोगों को नौकरी पर रखने के विशेष प्रावधान हैं. इसी तरह से सभी प्रदेशों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्थानीय लोगों के लिए कम ज्यादा किसी ना किसी तरह की सुविधाएं और प्रावधान हैं. स्थानीय निवासियों की परिभाषा और मानदंड भी अलग-अलग ही हैं. दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में मूल निवासियों के लिए किसी तरह का आरक्षण नहीं है. पश्चिम बंगाल और केरल में भी ऐसा कोई बंधन नहीं है.

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